Home > स्थानीय समाचार > कोविड अस्पताल के चिकित्सक व अन्य स्टाफ ने जीता दिल , कोरोना उपचाराधीन को अस्पताल में मिल रहीं सुविधाओं से गदगद राहुल बोले- युवा हूँ , कोरोना नहीं होगा का भ्रम टूटा

कोविड अस्पताल के चिकित्सक व अन्य स्टाफ ने जीता दिल , कोरोना उपचाराधीन को अस्पताल में मिल रहीं सुविधाओं से गदगद राहुल बोले- युवा हूँ , कोरोना नहीं होगा का भ्रम टूटा

लखनऊ।  मैं युवा हूँ और स्वस्थ हूँ इसलिए मुझे कोरोना नहीं होगा, लेकिन यह भ्रम टूट गया जब मैं कोरोना से ग्रसित हुआ “यह कहना है आलमबाग़ निवासी 28 वर्षीय राहुल कुमार आर्या का, जो लखनऊ में अपने दोस्त के साथ रहते हैं | राहुल बताते हैं कि जब बुखार आया तो मैंने 3-4 दिनों तक पैरासिटामाल दवा खायी | मन में चल रहा था कि मुझे कोरोना तो हो ही नहीं सकता है लेकिन 4-5 दिन तक बुखार न उतरने पर कोरोना की जाँच करायी तो पॉजिटिव निकला | इसके बाद धीरे-धीरे मेरे सूंघने और स्वाद की क्षमता भी चली गयी |
राहुल के अनुसार – इसके बाद होम आइसोलेशन का निर्णय लिया और एक अलग कमरे में रहने लगा | रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद स्वास्थ्य विभाग से फोन आया और उन्होने परिवार और घर के बारे में विस्तार से जानकारी ली तथा घर पर दवा पहुंचायी और एक डाक्टर का नम्बर भी दिया गया जिनसे कोई समस्या होने पर किसी भी समय बात कर सकता था | साथ ही आवश्यक सलाह भी दी गयी |
राहुल के अनुसार- रिपोर्ट पॉजिटिव आने के 3-4 दिन बाद सांस लेने में दिक्कत महसूस हुयी | पहले दिन तो इसको नजरंदाज किया लेकिन दूसरे दिन जब सांस लेने में दिक्कत हुयी तो कमांड कण्ट्रोल रूम पर फोन किया जहाँ से 45 मिनट के अन्दर एम्बुलेंस घर पहुँच गयी और लोकबन्धु अस्पताल में भर्ती करा दिया गया | इस दौरान अस्पताल में होने के बावजूद सीएमओ कार्यालय से लगातार स्वास्थ्य का फॉलो अप लिया जाता रहा | कोविड मरीजों के इलाज में लगी हुयी डाक्टर्स व स्टाफ की टीम पीपीई किट पहने होती है | पीपीई किट में बहुत देर तक रहना शायद एक आम आदमी के लिए बहुत दिक्कत भरा हो सकता है लेकिन वह डाक्टर इसके बावजूद हमेशा पीपीई किट में रहते हैं | जो डाक्टर हमारा इलाज कर रहे थे वह हर मरीज को उनके नाम से बुलाते थे | उनके फेस शील्ड के पीछे से पसीना टपकता हमें दिखायी दे रहा था जिसे वह पोंछ भी नहीं सकते थे लेकिन ऐसे में भी हर मरीज को उनके नाम से बुलाकर उनका हाल पूछते थे जैसे कि वह मरीजों को बहुत वर्षों से जानते हों जिससे आत्मीयता प्रतीत होती थी | इससे हमें बहुत मानसिक संतुष्टि मिलती थी तथा किसी के अपने पास होने का अनुभव महसूस होता था | इसके अलावा अस्पताल प्रशासन से फोन पर यह जानकारी ली जाती थी कि स्वास्थ्य कैसा है, दवा मिली, डाक्टर देखने आये या नहीं, वार्ड या वाश रूम में सफाई हुयी या नहीं, समय से नाश्ता या खाना मिला या नहीं , खाने या नाश्ते की गुणवतता कैसी है, चादर बदली गयी या नहीं, वार्ड के पर्दे साफ़ हैं या नहीं आदि | 24 घंटे वार्ड में शिफ्टवार एक वार्डब्वाय की ड्यूटी रहती थी जिससे कोई समस्या होने पर मदद ली जा सकती थी | वहां 7 दिन रहा और उसके बाद सकुशल घर वापस आ गया |
राहुल बताते हैं – उनका परिवार बहराइच में रहता है | ऐसी स्थिति में परिवार का न होना मानसिक रूप से थोड़ा कमजोर बना देता है लेकिन जब अस्पताल गया और वहां पर देखा कि सभी ठीक हो रहे हैं और साथ ही बुज़ुर्ग व्यक्ति भी सकुशल कोरोना उपचाराधीन होने के बाद ठीक हो कर घर जा रहे हैं तो एक मानसिक संबल मिला कि मैं भी ठीक हो जाऊंगा | मुझे कुछ नहीं होगा |
राहुल कहते हैं – कोरोना किसी को भी हो सकता है | इसको लेकर लापरवाही न बरतें | अगर होम आइसोलेशन में हैं और कोई दिक्कत हो रही है तो तुरंत ही अस्पताल जाएँ क्योंकि थोड़ी सी असावधानी जान को खतरे में डाल सकती है | मास्क लगा तो रहे हैं लेकिन उसको सही तरीके से नहीं हटाना या मास्क की ऊपरी सतह को छूना आदि खतरे में डाल सकता है |

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