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बच्चों को संस्कारित बनाने में परिवार की भूमिका अहम: आचार्य गोविंद मिश्रा

लखनऊ। हमें अपने बच्चों का नाम बहुत ही सोंच विचार कर रखना चाहिये क्योंकि नाम की महिमा होती है। कुल गुरु वशिष्ठ चारों भाइयों का नामकरण करने राजा दशरथ के महल में पहुंचे। उन्होंने सबसे पहले उनके बड़े पुत्र का नाम राम रखा। बच्चे के बारे में जब बताया तो अयोध्या में उनकी जय-जयकार होने लगी। पंडाल में बैठे भक्तजन भी इस प्रसंग को सुन उत्साहित होकर जयकारे लगाने लगे। विश्वनाथ मन्दिर के 32वें स्थापना दिवस के मौके पर श्रीरामलीला पार्क सेक्टर-ष्एष् सीतापुर रोड योजना कालोनी में चल रहे मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम कथा के चौथे दिन गुरुवार को कथा व्यास आचार्य गोविंद मिश्रा ने नामकरण, अहिल्या उद्धार, नगर दर्शन का प्रसंग सुनाया। नामकरण का प्रसंग सुनाते हुये उन्होंने बताया कि सभी को सुख देने वाले, सभी को भव से पार कराकर विश्राम देने वाले उनका नाम राम है। उनके नाम के स्मरण मात्र से लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान ने जन्म ही संसार में आकर लोगों के कष्ट को दूर करने के लिए लिया था। कथाव्यास ने कहाकि जिस भगवान की गोद में ब्रह्माण्ड खेलता है, वह भगवान बालरूप में माता कौशल्या की गोद में खेलते हैं। जिनकी गोद में दुनियाँ हँसती रोती है वे माता कौशल्या की गोद में कभी रोते हैं तो कभी हंसते है। भगवान की बाललीला अदभुत और मनमोहक है।
आचार्य गोविंद मिश्रा ने कहाकि आज भारत का बचपन नष्ट हो रहा है। बचपन नष्ट करने वाले कोई और नहीं, बल्कि उनके परिवार ही हैं। यदि बचा सके तो आज बचपन बचाएँ। बच्चे अपने परिवार की पाठशाला में ही सर्वप्रथम सीखतें हैं। हमारा पारिवारिक जीवन जैसा होगा, भावी पीढ़ी भी वैसी ही होगी। परिवार में जैसे संस्कार होगें, वैसा ही संस्कार बालक सीखता है।

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