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अंतिम चरणःजातीय समीकरण के आगे मुद्दे गौड़

मन्दिर मस्जिद और आरक्षण पर भी खूब होती बात
लखनऊ। अब केवल पूर्वांचल की धरती पर ही चुनाव बचा है। पहली जून को मतदान होगा और 13 सीटों के उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होगा। पूर्वांचल में मंदिर, मस्जिद, मजहब, आरक्षण, बेरोजगारी और महंगाई पर चर्चा तो खूब हो रही है लेकिन हावी सिर्फ समीकरण हैं। मतदाताओं पर जातीय अस्मिता का सवाल छाया हुआ है,उसके सामने सारे मुद्दे गौड़ हैं। अंतिम चरण के लोकसभा क्षेत्रों में मतदाताओं के दिलो-दिमाग पर जाति ही सबसे ऊपर दिखाई दे रही है। पूर्वांचल में 27 सीटें हैं, जिनमें 14 पर 25 मई को मतदान हो चुका है। शेष 13 सीटों पर पहली जून को मतदाता अपना फैसला सुनाएंगे। कुर्मी समाज को भाजपा अपने साथ मानती है। पिछले चुनावों में यह समाज पार्टी के साथ दिखा भी था।इस चुनाव में पार्टी ने कई प्रत्याशी बदले लेकिन इस समीकरण की ओर ध्यान नहीं दिया। देवीपाटन मंडल, बस्ती मंडल और अयोध्या मंडल में एक भी कुर्मी उम्मीदवार नहीं दिया। राज्य सरकार में भी इस समाज की हिस्सेदारी नहीं थी। इंडिया गठबंधन ने बस्ती, गोंडा, श्रावस्ती और अंबेडकरनगर में कुर्मी समाज से प्रत्याशी देकर भाजपा के कोर वोटबैंक में सेंध लगाने का दांव चला। इंडिया और एनडीए प्रत्याशी में कौन जीतेगा, यह नहीं कह सकते लेकिन जीत-हार का अंतर ज्यादा नहीं रहेगा। इंडिया गठबंधन इस समाज के मतों में सेंधमारी में काफी हद तक सफल हुआ है।सपा प्रत्याशी के एमवाई मुस्लिम व यादव फैक्टर में कुछ क्षत्रिय मतदाताओं का साथ मिलने से लड़ाई कांटे की है।कैसरगंज और डुमरियागंज में गठबंधन ने ब्राह्मण प्रत्याशी का दांव चला। जाति, आरक्षण व संविधान की बात करने के बावजूद कई जगह गठबंधन ब्राह्मण मतों में सेंध लगाता नजर आया है।आजमगढ़ और जौनपुर में तो एमवाई समीकरण ने खूब काम किया। दलितों के कुछ वोट सपा को मिले हैं। भाजपा प्रत्याशी को सवर्ण मतदाताओं के साथ ही गैर यादव ओबीसी का समर्थन मिला।भदोही में सवर्ण और बिंद मतदाता भाजपा के पाले में रहे तो टीएमसी प्रत्याशी ने ब्राह्मण मतों का बड़ा हिस्सा हासिल किया। प्रतापगढ़ में भी मुद्दों से ज्यादा जातीय समीकरण हावी रहे।एक जून को महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज में चुनाव होना है। इन सीटों पर भी मतदाता मुद्दों की चर्चा तो कर रहे हैं, पर वोट देने का आधार पूछने पर यही कहते हैं कि जिधर उनकी बिरादरी के सब लोग जाएंगे, उधर का ही रुख करेंगे। वे मुद्दों के बजाय ब्राह्मण, ठाकुर, कुर्मी, निषाद आदि जातीय पहचान में ही बंटे दिख रहे हैं।

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