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शिक्षा क्रान्ति से राष्ट्र परिवर्तन युवा शक्ति के प्रयास -डाँ० आफ़ताब आलम बलिया

विवेक जायसवाल
बलिया | भारत वास्तविक अर्थों में तेजी से आगे बढ़ रहा है। मुझे यकीन है कि इस देश को हम तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दुनिया का बेहतरीन देश बना सकते हैं। हमारे युवाओं में जबर्दस्त संभावनाएं हैं, ऊर्जा है और कुछ कर गुजरने की भावना भी। हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करना है, जिसमें लोगों का जीवन स्तर काफी ऊंचा हो- और यह तभी हो सकता है, जब हम अपने युवाओं को बेहतर शिक्षा, श्रेष्ठ प्रशिक्षण और विकास के अनुकूल वातावरण प्रदान कर सकेंगे।
भारत इस समय बहुत ही सुनहरे दौर से गुजर रहा है। हमारे देश में इस समय युवाओं की संख्या ज्यादा है। जिस देश में युवाओं की आबादी जितनी ज्यादा हो, वह उतनी ही तेजी से तरक्की करता है। इतिहास इसका गवाह है। यह सुनहरा दौर 2025 तक ही रहेगा, क्योंकि उसके बाद यह युवा पीढ़ी वृद्ध हो जाएगी। ऐसे में यह सभी की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि युवाओं की ऊर्जा नष्ट न होने पाए। उन्हें सभी क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा अवसर मुहैया कराए जाने चाहिए। हमें उन्हें ऐसी शासन व्यवस्था देनी होगी, जिसमें वे पॉजिटिव सोच के साथ राष्ट्र निर्माण में अपना रोल निभा सकें। आज भारत में बेरोजगारी सुरसा के मुख की तरह बढ़ रही है। यह हमारे देश की मुख्य समस्याओं में से एक है। इसके उन्मूलन के लिए हमें रोजगार दिलाने वाली शिक्षा का इंतजाम करना होगा। मेरा मानना है कि अगर हम युवा-शक्ति को ताकत दें और उनके लिए जीवन को बदलने की सुविधा जुटाएं, तो भविष्य उजला होकर रहेगा।
दरअसल युवाओं से देश के विकास में योगदान की अपेक्षा तो बहुत की जाती है, लेकिन विकास की नीतियां तय करने में उनकी सीधी भागीदारी नहीं होती। जाहिर है, अगर युवाओं के हाथों में देश की तकदीर तय करने की ताकत दी जाए, तो उन्हें भी एक दिशा मिलेगी और कुछ करने का उत्साह भी। हमारे देश में शिक्षा के मामले में भी सुधार की जरूरत है। हम स्वयं को तब तक एक विकासशील राष्ट्र नहीं कह सकते, जब तक तीन में से एक आदमी अपना नाम तक नहीं लिख सकता। इस देश के सामने एक और सबसे बड़ा जीता-जागता सवाल सांप्रदायिक जहर का है। इसे हर हाल में समाप्त होना चाहिए। इस देश में हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई और अन्य सभी संप्रदायों के लोग रहें, लेकिन सबसे पहले वे हिंदुस्तानी हों। इस तरह से हम दुनिया को दिखा सकते हैं कि यह राष्ट्र कितना पॉजिटिव नजरिए वाला है, शांति प्रेमी है। धर्म के नाम पर इस पृथ्वी पर हजारों युद्ध हो चुके हैं और इसके जिम्मेदार हम स्वयं हैं। कोई धर्म नहीं सिखाता कि मानवता का इस प्रकार से खून बहाया जाए। नए भारत में हमें किसी के प्रभाव या दबाव में न आकर स्वविवेक से अपनी अस्मिता, एकता व अखंडता की रक्षा करनी होगी। भगवान ने हर इंसान को अलग-अलग बनाया है। इस पृथ्वी पर कोई भी दो आदमी एक जैसे नहीं हैं। ईश्वर की इस कृति का आदर कर हर इंसान को यह समझना होगा कि उसके अंदर अपार क्षमताएं हैं, संभावनाएं हैं और असीमित ऊर्जा का भंडार है। एक बड़े खिलाड़ी, अभिनेता, चित्रकार या कवि के भीतर जैसी क्षमता छिपी है, वैसी ही एक सामान्य से दिखने वाले व्यक्ति के अंदर भी है। जरूरत है तो बस उसे अपने अंदर खोजने की। जाहिर है, हमें अपने युवाओं में इस भाव को भरना होगा।
युवाओं से यह उम्मीद की जाती है कि वे भारतवर्ष को उन्नत व विकसित देशों की कतार में लाने के लिए अपना कीमती योगदान देंगे, ताकि हमारा राष्ट्र विश्व में अपनी अनुपम व अमिट पहचान बना सके। देश के अमर शहीदों ने भारत के लिए जो सपने देखे थे, उन्हें साकार करने में हमारी अहम भागीदारी हो। ऐसा तभी मुमकिन होगा, जब देश का हर वर्ग, चाहे वह अमीर हो या गरीब, दुकानदार हो या व्यापारी या किसी भी जाति से संबंध रखता हो, देश के लिए कुछ न कुछ समय निकाले, आधुनिक और तकनीकी नजरिए के साथ उसे उन्नति के शिखर पर पहुंचाने की भावना रखें। तभी हम अपने आपको एक सच्चा भारतीय सिद्ध करके दिखा सकते हैं।

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