अजीजुद्दीन सिद्दीकी
मनकापुर गोंडा मगफिरत की बात दरअसल रूहानियत से, रूहानियत इबादत से, इबादत अल्लाह से ताल्लुक़ रखती हैं। रोजा, रूहानियत का रास्ता है। रोजा अल्लाह से वास्ता है। तक़्वा रोजे की शर्त है। तरीके से रखा गया रोजा, रोजादार के लिए सवाब ही सवाब है। रोजा नेकी के मकान में मगफिरत का चिराग है। रमजान के पवित्र माह का दूसरा अशरा जैसा कि पहले जिक्र किया जा चुका है कि मगफिरत का अशरा है। रोजा जब अहकामे-शरीअत की पाबंदी के साथ रखा जाता है तो अल्लाह की अदालत में रोज़ेदार के लिए मग़फ़िरत का वकील हो जाता है। क़ुरआन के तीसवें पारे (आयत-30) की सूरह अल आ’ला की आयत नंबर चौदह और पंद्रह में ज़िक्र है-‘ बेशक वो मुराद को पहुंच गया जो पाक हुआ और अपने परवरदिगार के नाम का जिक्र करता रहा और इबादत करता रहा। कुरआने-पाक की इस आयत की रोशनी में रोजे को बेहतर तरीक़े से समझा जा सकता है ‘वो मुराद को पहुंच गया’ में जो लफ़्ज़ ‘मुराद’ है दरअसल रूहानी लिहाज़ से मग़फ़िरत की मुराद पूरी होने का इशारा है। लेकिन शर्त है ‘जो पाक हुआ और अपने परवरदिगार अल्लाह का जिक्र करता रहा और इबादत करता रहा’ यानी नेक अमल के साथ अल्लाह का जिक्र करता रहा और नमाज़ पढ़ता रहा यानी इबादत करता रहा। मुख़्तसर यह कि रोज़ा मगफिरत का चिराग तभी होगा जब रोजादार नेकी के मकान में रहे यानी किसी का दिल न दुखाए, गुस्सा नहीं करें, रिश्वत-घूस नहीं लें, बेईमानी नहीं करे, माँ-बाप की खिदमत करें, अल्लाह की इबादत करें