सुरेश कुमार तिवारी
कहोबा चौराहा गोंडा । खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना ‘माह-ए-रमजान’ न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है। मौजूदा हालात में रमजान का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है।
इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं।इस माह में दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत की राह खुल जाती है। इंदारा निवासी मौलाना हामिद अंसारी ने बताया कि रोजा अच्छी जिंदगी जीने का प्रशिक्षण है जिसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का जमीर रोजेदार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिए जरूरी हर बात की तरबियत देता है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया की कहानी भूख, प्यास और इंसानी ख्वाहिशों के गिर्द घूमती है और रोजा इन तीनों चीजों पर नियंत्रण रखने की साधना है।
उन्होंने कहा कि रोजे रखने का असल मकसद महज भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना नहीं है बल्कि रोजे की रूह दरअसल आत्म संयम, नियंत्रण, अल्लाह के प्रति अकीदत और सही राह पर चलने के संकल्प और उस पर मुस्तैदी से अमल में बसती है।
मौलाना ने रमजान के महत्व के बारे में कहा कि अमूमन साल में 11 महीने तक इंसान दुनियादारी के झंझावातों में फंसा रहता है। लिहाजा अल्लाह ने रमजान का महीना आदर्श जीवनशैली के लिए तय किया है। उन्होंने बताया कि रमजान का उद्देश्य साधन संपन्न लोगों को भी भूख-प्यास का एहसास कराकर पूरी कौम को अल्लाह के करीब लाकर नेक राह पर डालना है। साथ ही यह महीना इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद का मूल्यांकन कर सुधार करने का मौका भी देता है।