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हर बालिक मुस्लिम पर रोजा फर्ज है

रोजेदार अजीजुद्दीन सिद्दीकी

सुरेश कुमार तिवारी
कहोबा चौराहा गोंडा।  दुनियामें चाहे जो भी कौम हो, सभी लोग रोजा, उपवास रखते हैं। उलेमा फरमाते हैं कि शुरू में मुहर्रम का दो रोजा वाजिब किया गया था। पैगम्बर मोहम्मद को जब अल्लाह ने अपना नबी बनाया तो अल्लाह ने उस वक्त उनके उम्मत पर 50 दिन का रोजा रखने का हुक्म दिया था। पैगम्बर मोहम्मद ने अल्लाह के इस हुक्म पर उनसे गुजारिश की कि मेरे उम्मत से 50 दिन का फर्ज रोजा हमारी उम्मत नहीं रखा जाएगा। अल्लाह ने उनकी गुजारिश को कबूल करते हुए रमजान में 30 दिनों का रोजा उनकी उम्मत पर फर्ज किया। शेष 20 रोजा नफिल किया गया जो ईद के बाद छह रोजे, मुहर्रम, बकरीद, शाबान, रजब आदि महीने में रखे जाते हैं। नफिल रोजों को रखने पर सवाब है। नहीं रखने पर गुनाह भी नहीं है। इमारत-ए- शरिया के नाजिम मौलाना अनिसुर रहमान कासमी फरमाते हैं कि कियामत तक सभी बालिग मुसलमानों पर रमजान के तीस रोजे फर्ज किए गए हैं। 

किसपर फर्ज है रोजा : कुरआनहदीस में इस बात का जिक्र है कि हर बालिग मर्द औरत पर रमजान का रोजा फर्ज किया गया है। जो बीमार हैं, बहुत बूढ़े हैं, शरीर में रोजा रखने की क्षमता नहीं है, मानसिक रूप से बीमार हैं उन्हें रोजा नहीं रखने की बात कही गई है। बीमार अगर स्वस्थ हो जाए तो पहली फुर्सत में रोजा रखे। अगर वह बराबर बीमार रहता है तो उन्हें तीस रोजे के बदले 60 गरीबों को दोनों वक्त का खाना खिलाना होगा या फिर 60 गरीबों को पौने दो किलो गेहूं या इसके बराबर बाजार की मौजूदा कीमत पर रकम अदा करने होंगे। अगर कोई सफर में है और उसे रोजा रखने में दिक्कत हो तो सफर खत्म होते ही रोजा रखने का हुक्म है। वरना वह गुनहगार होगा। 

क्योंहै रमजान के रोजे की अहमियत : इसमाह की अहमियत इसलिए सबसे ज्यादा है कि इसी महीने में अल्लाहतआला ने पैगम्बर मोहम्मद (सल.) पर कुरआन नाजिल (उतारा) किया। पिछले चौदह सौ वर्षों से अधिक समय से मुसलमान भाई रोजा रखते रहे हैं। इस माह में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं तथा जहन्नुम को बंद कर दिया जाता है। शैतानों को पूरे माह कैद कर दिया जाता है। गरीबों, लाचारों, बेकसों, मुफलिसों को मदद करने का सवाब आम दिनों के मुकाबले 70 गुना ज्यादा है। 

रोजेके साथ नमाज तिलावत जरूरी है : रोजाका मतलब सिर्फ दिनभर भूखा रहना नहीं है। रोजे की हालत में नमाज कुरआन की तिलावत करना जरूरी है। अल्लाह तआला इस माह में इबादत करने वालों को आम दिनों के अपेक्षा 70 गुना अधिक सवाब देते हैं। इस माह के आखिर पांच विषम रातों में शबे कदर आता है। एक रात की इबादत का सवाब एक हजार महीनों के सवाब के बराबर है। 

रोजा नहीं रखने वाले गुनहगार हैं 

अगरकोई बालिग मर्द औरत जान बूझकर इस माह का रोजा रखे तो वह गुनहगार है। उलेमा फरमाते हैं कि अल्लाह तआला ने एलान किया है कि ऐसे लोग जहन्नुम में जाएंगे जो रोजा रखे। हुक्म तो यहां तक है कि वह शख्स जिसने रोजा नहीं रखा, वह ईद की नमाज रोजेदारों के साथ अदा करे। 

कैसेरखें रोजा : रोजेदाररात के तीसरे पहर में अजान होने से पहले कुछ खा-पी लें। खाने के बाद वह रोजे की नीयत करे। फिर सुबह की नमाज अदा करे। दिन निकलते ही अपना काम करे। दिन में जोहर असर की नमाज अदा करे। कुरआन की तिलावत करे। फिर शाम में अजान होने के बाद फौरन इफ्तार करे। उसके बाद मगरिब की नमाज अदा करे। रात में ईशा की नमाज के बाद जमाअत से तरावीह पढ़े और फिर सो जाए। 

इसतरह टूट जाता है रोजा : रोजेकी हालत में अगर किसी ने जान-बुझकर खा लिया या पानी पी लिया तो उसका रोजा टूट जाएगा। अगर उसने अनजाने में कुछ खा लिया और फौरन कुल्ला कर तौबा कर लिया तो रोजा नहीं टूटता है। रोजे के दौरान पति-प|ी संबंध स्थापित करने से रोजा टूट जाता है। 

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