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28 वा रोजा दोजख से निजात दिलाता है

कहोबा चौराहा गोंडा। क़ुरआने-पाक के तेईसवें पारे की सूरह ‘सफ्फात’ की पचहत्तरवीं आयत में अल्लाह का इरशाद है- ‘और हमको नूह ने पुकारा सो हम खूब फरियाद सुनने वाले हैं।’ इस आयत की रोशनी में अट्ठाईसवां रोजा बेहतर तौर पर समझा जा सकता है। गौरतलब बात है कि रमजान का यह आखिरी अशरा दोजख से निजात का अशरा है। अल्लाह की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उसका कोई शरीक नहीं है और वो अपने बंदे की फरियाद सुनता है। जैसा कि मजकूर आयत में अल्लाह ने खुद फरमाया है ‘सो हम खूब फ़रियाद करते है।’ यहाँ समझने-समझाने के लिहाज से बाद वाला कौल पहले देखना होगा, क्योंकि इसी कौल पर इबादत (जो बंदा करता है) और ‘रहमत’ (अल्लाह की) के ताल्लुक का दारोमदार है। यानी जब अल्लाह वादा कर रहा है रहमत का तो उसे पुकारना भी तो होगा यानी इबादत भी तो करना होगी। इसीलिए इस आयत में जो यह कहा गया है कि ‘और हमको नूह ने पुकारा’ तो इसके मानी ‘ये है कि जब रोजादार बंदा परहेजगारी के साथ अल्लाह को पुकारता है यानी इबादत करता है तो अल्लाह अपना वादा निभाता है।’ यानी फरियाद सुनता है और गुनाह माफ कर देता है। गुनाह माफ करने से यानी जब अल्लाह बंदे को माफी दे देता है बंदा जहन्नुम की आग से निजात पा जाता है और जन्नत का हकदार हो जाता है। वैसे भी अट्ठाईसवां रोजा जिस दिन होता है उस तारीख को शाम के बाद उन्तीसवीं ताक रात होती है, जिसमें भी शबे-कद्र को तलाशा जाता है। इबादत से ही तो तलाश मुकम्मिल होकर मंजिल मिलेगी। यानी अल्लाह की इबादत जन्नत की कुंजी है। हजरत मोहम्मद (सल्ल.) का इरशाद है- ‘खड़े होकर इबादत कर।

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