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पीड़ित परिवार ने एसओ पर लगाया छेड़खानी के तहरीर को मन मुताबिक बदलने का आरोप

सुरेश कुमार तिवारी
कहोबा चौराहा गोंडा|पीड़ितों के हितों को लेकर जिले के समस्त थानों में प्र शासन का सख्त निर्देश पारित है, कि उन्हें दुश्वारियां को ना बढ़ाकर उन्हें त्वरित न्याय दिलाया जाए। मगर परसपुर थाने में थानेदार का अपना ही कानून चलता है। यहां छेड़खानी की शिकार हुई पीड़िता के परिजनों का आरोप है कि यहां के प्रभारी निरीक्षक ने खुद ही उनके छेड़खानी की तारीख को बदलकर मामले को डकार ने का प्रयास किया।जिसका विरोध करने के एवज में लाक डाउन का फायदा उठाते हुए उनके इंसाफ को लाक कर उनके इंसाफ को डाउन किया जा रहा है। प्रकरण परसपुर थाना क्षेत्र के शाहपुर चौकी अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का है। जहां की एक लड़की ने 25 अप्रैल कोछेड़खानी का मामला दर्शाते हुए आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने हेतु सर्वप्रथम शाहपुर चौकी में नामजद तहरीर दी थी। जिसमें उसने या दर्शाया था। की शाहपुर बरदाहा चौराहे पर जब वह सब्जी के दुकान से सब्जी खरीदने गई थी। तो सब्जी विक्रेता ने उसे अभद्र व्यवहार करते हुए छेड़छाड़ खानी तहरीर देने के बावजूद जब वहां के चौकी इंचार्ज हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। तो पीड़िता ने परिजनों के साथ थाने पर जाकर तहरीर दी।मदर हद तो तब हो गई जब वहां भी इनके इंसाफ की आवाज को दबाने की कोशिश की गई। पीड़िता के परिजनों का आरोप है।लाक डाउन का फायदा उठाते हुए उनके तहरीर पर कारवाई ना करके थानेदार ने खुद ही बोलकर दीवान से दूसरी तहरी लिखवा दी। जिसमें या दर्शाया गया है कि सब्जी लेते हुए धक्का दिया गया है। जिस पर हस्ताक्षर ना करने पर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। अब पीड़ित परिजनों को लाक डाउन खुलने का इंतजार है। क्योंकि इस लाक डाउन में थानेदार के द्वारा इनके फरियाद की आवाज को भी लाक कर उसे डाउन कर दिया गया है। यही नहीं ऐसे ही जिले में कई थानेदार हैं जो कि पीड़ित के आवाज को दबाने में माहिर हैं। और बड़े से बड़े मामलों को दबा देते हैं।
क्या कहते हैं थानेदार
छेड़खानी के इस प्रकरण को लेकर परसपुर थाना प्रभारी निरीक्षक का कहना है कि मामला छेड़खानी का नहीं है इनका जमीनी रंजिश था। इसमें 151 के तहत कार्रवाई की गई है।
छलका पीड़ित के परिजनों का दर्द
पीड़ित परिजनों ने बताया कि जमीनी रंजिश 4 साल पहले थी, जिसका सुला समझौता भी हो चुका था। इस मामले में उसका कोई लेना-देना नहीं है। मामले को डकार कर सुलह समझौता हेतु असलियत पर पर्दा डाला जा रहा है। और अब यहां क्या सच है क्या झूठ यह तो वक्त के एक पन्ने में कैद है। मगर सच तो या भी है के दर्द कोई यूं बयां नहीं करता।

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