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नगर में बड़े धूमधाम व हर्षोल्लास से नगर वासियों ने मनाया डाक्टर भीमराव अम्बेडकर का 131 जन्मोत्सव

उन्नाव। उन्नाव गंगाघाट कोतवाली के अंतर्गत गंगाघाट नगर के अंबेडकर पार्क पोनी रोड , रविदास नगर अंबेडकर पार्क, इंदिरा नगर अंबेडकर पार्क, बौद्ध विहार सीताराम कॉलोनी, भीम नगर,आदर्श नगर, अंबेडकर नगर, कंचन नगर अंबेडकर पार्क, आजाद नगर ,अंबेडकर पार्क सुखलाल खेड़ा, कुशाल खेड़ा अंबेडकर पार्क में लगी अंबेडकर प्रतिमाओं पर उनके अनुयायियों ने फूल माला पहनाकर 131 के जन्मोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाते हुए उनके द्वारा किए गए देश के करोड़ों दलितों , पिछड़ों शोषित समाज व महिलाओं उत्‍थान, तथा नागरिकों में समानता लाने के लिए किए गए कार्यों पर प्रकाश डाला देश के संविधान को आकार देने वाले डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर का जन्म साल 14 अप्रैल 1891 में हुआ था इन्हें ‘दलितों का मसीहा’तथा महिलाओं को समाज में सामाजिक समता तथा उनका उद्धार करने वाला कहा जाता डाॅ. भीम राव अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था। भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था.डॉ. भीमराव अंबेडकर अपने माता-पिता की 14वीं संतान थे। विदेश जाकर अर्थशास्त्र डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले वह पहले भारतीय थे।
जब वह 1926 में भारत आए तब उन्हें मुंबई की विधानसभा का सदस्य चुना गया तथा उन्होंने भारत के संविधान को लिखा। वह आजाद देश के पहले कानून मंत्री बने.साल 1990 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया डॉ. भीमराव अंबेडकर ने ही सबसे पहले छुआछूत, दलितों, महिलाओं और मजदूरों से भेदभाव जैसी कुरीति के खिलाफ आवाज उठाई डॉ. बाबा साहब भीमराव आंबेडकर भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे। जिन्होंने उपेक्षितों, शोषितों, दलितों, पिछड़ों, पीड़ितों में सम्मानपूर्वक जीने की ललक जगाई। हज़ारों सालों से हो रहे शोषण और दमन के कारण, मानसिक रूप से मृत पडे समाज में अपने अधिकारों के प्रति जो बिगुल फूका था, वह कारवां बनकर निरंतर बढ़ता जा रहा है देश को आज़ादी प्राप्त होने के बाद उन्होंने कहा था, “हम ऐसे समय में प्रवेश कर रहें हैं, जिसमें हम राजनैतिक रूप से तो बराबर हैं, लेकिन सामाजिक रूप से बराबर नहीं है डॉ भीमराव आंबेडकर ने भारतीय समाज-व्यवस्था का गहन अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि भारत को कमज़ोर बनाने, इसकी विकास की धारा अवरुद्ध करने तथा सामाजिक सौहार्द्र में सबसे बड़ी बाधा भेदभावपूर्ण जाति-व्यवस्था ही है। उनके समय देश में जातिप्रथा, जिसका सबसे अमानवीय रूप छुआछूत था, आज से कहीं अधिक विद्यमान थी। देश को आज़ाद हुए लगभग 70 साल से ज्यादा समय होने के बाद भी, जाति व्यवस्था रूप बदलकर हमारे समाज में मौजूद हैं डॉ भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय समाज के शोषितों, पीड़ितों, दलितों और पिछड़ों को आह्वान करते हुए कहा “शिक्षित बनो! संगठित बनो! संघर्ष करो!” उन्होंने सिर्फ कहा ही नहीं बल्कि इसे अंजाम देने के लिए संस्थाओं और संगठनों का भी निर्माण किया। उनके द्वारा स्थापित संगठन और संस्थाएं हैं – सन् 1924 में बनी बहिष्कृत हितकारिणी सभा, सन् 1927 में समता सैनिक दल, सन् 1928 में डिप्रेस्ड क्लासेस एजुकेशन सोसायटी, सन् 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी, सन् 1942 में अनुसूचित-जाति फेडरेशन, भारतीय बौद्ध महासभा आदि। इन संगठनों के माध्यम से उन्होंने लोगों को शिक्षित और संगठित करने का महान काम किया। उन्होंने पीपुल्स एजुकेशनल सोसाइटी के अंतर्गत 1946 में, बंबई में सिद्धार्थ महाविद्यालय और 1950 में औरंगाबाद में मिलिंद महाविद्यालय की स्थापना की। इसके साथ ही 1953 में, बंबई में सिद्धार्थ वाणिज्य और अर्थशास्त्र महाविद्यालय एवं बंबई में, सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय की स्थापना की। शिक्षा से सालों तक उपेक्षित समुदाय को शिक्षा का महत्त्व बताते हुए उन्होंने कहा, शिक्षा वह शेरनी का दूध है जिसे जो पिएगा वह दहाड़ेगा
बाबा सहाब के सामाजिक आंदोलन
समाज सुधारक रायबहादुर सीताराम केशव के प्रयासों से 4 अगस्त 1923 को बंबई विधान परिषद में एक प्रस्ताव पास हुआ, जिसके अनुसार अछूतों, दलितों, पिछड़ों को सार्वजानिक जगहों का उपयोग करने की उन्हें अनुमति मिल गई। कानूनी अधिकार मिलने के बावजूद भी तथाकथित उच्च कहलाने वाली कुछ जातियों के लोगों ने, इसे स्वीकार नहीं किया। महाड़ नामक बस्ती में चवदार तालाब के पानी का उपयोग अछूतों ने भी करना चाहा, लेकिन महाड़ बस्ती के सवर्ण इसके विरुद्ध थे। महाड़ के दलित कार्यकर्ताओं ने बाबा साहब को इस प्रकार के व्यवहार के बारे में बताया। 19-20 मार्च 1927 में बाबा साहब के नेतृत्व में दलितों ने इसके विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ किया। बड़ी संख्या में सामाजिक न्याय की आस में लोग इकट्ठा हुए और तालाब के पानी को पी लिया। जिस पानी को कुत्ते बिल्ली पी सकते थे, जानवर उसमें नहा सकते थे, उस पानी को दलित छू भी नहीं सकते थे। मानवीय गरिमा का इतना पतन! इस कारण बाबा साहब बड़े चिंतित और दुखी हुए। उनके दुखित मन के तूफान ने उन्हें 26 जून 1927 को ‘बहिष्कृत भारत’ में यह घोषणा करने को मजबूर किया, “अछूत समाज हिन्दू धर्म के अंतर्गत है या नहीं दरअसल, अछूत समाज सिर्फ कहने के लिए हिन्दू था। उसे समाज में देवी-देवताओं के मंदिर में जाने तक की अनुमति नहीं थी। इसका असर हम आज आज़ादी के लगभग 70 साल बाद भी देखते हैं जो कभी अखबारों तो समाचार चैनल की सुर्खियां बन जाता है डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने आजीवन अछूतों के अधिकार की लड़ाई लड़ी। वे हमेशा अपने निजी जीवन की परेशानियों को भूलकर दलितों, पिछड़ों, महिलाओं और वंचित समुदायों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए प्रयासरत रहें।
आज उन्हें विश्व के सबसे बड़े संविधान के निर्माता और ‘सिम्बल ऑफ नॉलेज’ के नाम से जाना जाता है। कहते हैं, 21वीं सदी बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की है। उनके लोकतान्त्रिक विचारों का असर समाज में, दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर का भारतीय समाज में वंचितों के सम्मान की लड़ाई शुरू करने के उनके अभूतपूर्ण योगदान के लिए, वे दलितों और पिछड़ों के लिए एक सूर्य समान हैं, जिनसे वे रोशनी, जीवन और उर्जा प्राप्त करते हैं जन्मदिन के इस शुभ अवसर पर लोगों एक दूसरे को लड्डू खिलाकर मुंह मीठा किया तथा युवाओं ने मोटरसाइकिल रैली निकाली बच्चों के लिए ज्ञान प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया तथा नगर में सैकड़ों जगह भीम भोज का आयोजन किया गया जिसमें पूरी सब्जी, तहरी, हलवा, मिठाई ,लड्डू ,पेठा ,शरबत ,तथा जूस का वितरण किया गया वहीं शाम को लोगों ने अपने घरों में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के चित्रों पर माल्यार्पण करते हुए उनके बताए हुए रास्ते पर चलने का संकल्प लिया वही नगरपालिका अध्यक्षा रंजना गुप्ता व उनके प्रतिनिधि गोल्डी गुप्ता भाजपा के केडी त्रिवेदी ने 6 खंभा स्थित अंबेडकर प्रतिमा पर माल्यार्पण किया राजेंद्र गौतम, पुत्तन लाल, चंद्रिका प्रसाद बौद्ध, ,अमन गौतम, रेखा, रामचंद्र, पूरन, संजय, सभासद टीटू, सभासद उर्मिला गंगाराम, राजाराम, मुकेश गौतम, सुरेंद्र ,अरुण ,एडवोकेट राम औतार निषाद ,पूर्व प्रधान जगमोहन, प्रधान दीपचंद निषाद, जे जे लाल, प्यारेलाल ,संतोष कपूर, श्याम बिहारी ,बाबूलाल, बृजलाल, बद्री प्रसाद।

अवध की आवाज गंगाघाट अपराध संवाददाता विकास श्रीवास्तव के साथ राजकुमार गौतम की रिपोर्ट

 

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