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सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मंदिर मस्जिद मुकदमे में फिर से मध्यस्थता की जताई ज़रूरत लिखी चिट्ठी


राम मंदिर बाबरी मस्जिद केस में 21 वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने की नयी मांग
. मुस्लिम पक्ष से अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा गैर अनुकूल माहौल में उनके लिए बहस करना मुश्किल।
. अधिवक्ता धवन ने कहा उनके क्लर्क की शीर्ष अदालत परिसर में कुछ लोगों ने की पिटाई

अयोध्या | सुप्रीम कोर्ट में चल रही बाबरी मस्जिद राम मंदिर मुकदमे की सुनवाई में एक नया मोड़ आ गया है | इस मुकदमे की नियमित सुनवाई में सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता राजीव धवन ने एक नई चिट्ठी लिखकर इस मामले में एक बार फिर से मध्यस्थता की मांग की है | अधिवक्ता राजीव धवन ने पूर्व में गठित अध्यक्षता पैनल के तीन जजों को इस संबंध में चिट्ठी लिखी है | वही सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता द्वारा की गई नई मांग को लेकर विश्व हिंदू परिषद ने कहा है कि सिर्फ मुकदमे को लटकाने के लिए इस तरह के क्रियाकलाप किए जा रहे हैं | सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता राजीव धवन ने कोर्ट को तर्क दिया है कि ऐसे गैर अनुकूल माहौल में उनके लिए बहस करना मुश्किल हो गया है पूर्व में भी उनकी कानूनी टीम के क्लर्क को धमकी मिल चुकी है| बताते चलें कि धवन ने धमकी देने के मामले में ही पूर्व में भी एक 88 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ अवमानना दायर कर रखी है |शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अधिवक्ता धवन ने कोर्ट को यह भी जानकारी दी कि शीर्ष अदालत के परिसर में कुछ लोगों ने उनके लिपिक की पिटाई कर दी थी | जिस पर चीफ जस्टिस ने कोर्ट के बाहर इस तरह के व्यवहार की निंदा की बात कही थी | चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने यह भी कहा था कि दोनों पक्ष बिना किसी डर के अपनी दलीलें अदालत के सामने रखने के लिए स्वतंत्र हैं | चीफ जस्टिस ने सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता राजीव धवन से यह भी पूछा कि क्या वे सुरक्षा चाहते हैं | इस पर राजीव धवन ने इनकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह भरोसा दिलाना ही उनके लिए काफी है बुधवार को 21 वे दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से अधिवक्ता राजीव धवन ने अपना पक्ष रखा और कहा कि संविधान पीठ को दो मुख्य बिंदुओं पर ही विचार करना है ,जिसमें पहला विवादित स्थल पर मालिकाना हक किसका है और दूसरा क्या गलत परंपरा को जारी रखा जा सकता है | सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता राजीव धवन ने ने सन 1962 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया और कहा कि जो गलती हुई उसे जारी नहीं रखा जा सकता यही कानून के तहत होना चाहिए |

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