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ग्यारहवीं पुण्यतिथि पर याद किये गये जनकवि अदम गोंडवी, 

जिला संवाददाता विनोद कुमार सिंह,,
गोण्डा।विकास खण्ड परसपुर अन्तर्गत ग्राम गजराज पुरवा स्थित अदम गोंडवी प्राथमिक विद्यालय परिसर में समाधि स्थल पर परिजनों एवं सम्भ्रांत व्यक्तियों ने पहुँचकर जनकवि रामनाथ सिंह “अदम गोंडवी” की 11वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रधांजलि देते हुये उन्हें याद किया गया।
राम नाथ सिंह “अदम गोंडवी” जी का जन्म 22 अक्तूबर 1947 को विकास खण्ड परसपुर की आटा ग्राम पंचायत के पूरे गजराज सिंह में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा दीक्षा यहीं ग्रामीण स्तर पर हुई थी।18 दिसंबर 2011को राम नाथ सिंह, अदम गोंडवी जी इस दुनिया को अलविदा कर चले गये।
इस अवसर पर अदम गोंडवी की धर्मपत्नी कमला देवी.अलोक सिंह.मनीष सिंह.रितेश सिंह. सतेंद्र सिंह. विजय पाल सिंह. मोहम्मद अनवर. प्रेमनारायण सिंह. जानकी सिंह. रामदेव सिंह. रामु सिंह. राम सुभग सिंह. जगदम्बा सिंह. संजय, राकेश शुक्ला व परसपुर विकास मंच के डॉ0 अरुण सिंह सहित अन्य तमाम क्षेत्रीय गणमान्यजन उपस्थित रहे।
खुदी सुकरात की हो या हो रूदाद गांधी की,
सदाकत जिंदगी के मोर्चे पर हार जाती है,
फटे कपड़ों में तन ढांके गुज़रता हो जहाँ कोई,
समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है,।।
अदम गोंडवी का न होना शायरी के उस मिजाज़ का अवसान है जिसने सत्‍ता का कभी मुँह नहीं जोहा, जीवन में कभी समझौते नहीं किए। कबीर के बाद दुनिया में ऐसी कोई शख्‍सियत नही थी जो उनकी जगह ले सके। इसीलिए दुनिया में अदम का आगमन हुआ तो उन्‍हें शायर मानने  की वजह यह थी कि वे गजलों में उसी साफगोई के साथ अवाम के नाम एक नया पैगाम लिख रहे थे। इसी तरह धूमिल हिंदी कविता में अपने नाराज़ तेवर के साथ आए तो कविता की अराजक मुद्राओं से आच्‍छादित हिंदी कविता की धारा ही लगभग बदल गयी। धूमिल के बागी तेवर ने कविता को एक विस्‍फोटक की तरह रचा जहॉं किसी भी तरह के मानवीय अपकर्ष के विरुद्ध कविता के नए मुहावरे में वे लोकतंत्र की गड़बड़ियों की मुखर आलोचना कर रहे थे। अदम opकी शायरी धूमिल के तेवर ,दुष्‍यंत ने कई विधाऍं, आजमायीं, उपन्‍यास, कहानी, कविता, गीत और गजल काफी प्रचलित रहीं। लेकिन मकबूलियत उन्‍हें गजलों में  ही हासिल हुई।बहुत ही कम पढ़े लिखे अदम ने केवल गजल का दामन थामा और थोड़े ही दिनों में कबीर की तरह उनकी भी कई अशआर जबान पर चढ़ गए। आपातकाल की जमीन पर लिखी गजलें जैसे आम आदमी की अभिव्‍यक्‍ति का माध्‍यम बन गयीं, अदम इस मुल्‍क की लुटी पिटी तस्‍वीर साफ दिखाई पड़ती है।
जुल्फ – अंगडाई – तबस्सुम – चाँद – आईना -गुलाब,
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब|
पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी,
इस अहद में किसको फुर्सत है पढ़े दिल की किताब|
आप आएं तो कभी गावों की चौपालों में,मैं रहूँ या न रहूँ, भूख मेजबाँ होगी।
 सियासत, लोकतंत्र और व्‍यवस्‍था पर चाबुक मारती अदम गोंडवी की ग़ज़लों में एक ऐसी खनक सुनाई देती थी,। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गॉंव से ऊपर उठ कर अदम का यश भूमंडलव्‍यापी हो उठा था। कोई नही जानता था कि खसरा खतौनी में रामनाथ सिंह के नाम से जाना जाने वाला यह शख्‍स ग़ज़ल के आँगन में आग बिखेरने वाला अदम गोंडवी है। उनकी मकबूलियत का आलम यह कि सियासत से लेकर अदब से ताल्‍लुक रखने वालों तक की जबान पर अदम के शेर विराजते रहे हैं।

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