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अवैध कब्जों के चलते मोहनलालगंज तहसील क्षेत्र में तालाबों झीलों का अस्तित्व खतरे में

कस्बे में स्थित 43 बीघे में फैली झील का अस्तित्व हो रहा समाप्त,प्लाटिंग कर बिल्डर हो रहे मालामाल
नवीन वर्मा
मोहनलालगंज । मोहनलालगंज तहसील क्षेत्र में झीलों और तालाबों पर अवैध कब्जा होने के चलते झीलों और तालाबों का अस्तित्व समाप्ति की कगार पर पहुंच गया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा झीलों और तालाबों को कब्जा मुक्त कराने के आदेश जारी करने के बाद शासन के निर्देश पर अधिकारियों द्वारा कार्ययोजना भी तैयार कर तालाबों को अवैध कब्जा मुक्त कराने के लिए जिला प्रशासन ने तहसील स्तर पर एंटी भूमाफिया टास्क फोर्स का गठन भी किया। लेकिन इसके बावजूद भी तालाबों व सरकारी जमीनो को अवैध कब्जा मुक्त कराने में प्रशासन कामयाब होता नहीं दिख रहा है। यही वजह है कि शासन की सख्त हिदायत के बाद भी मोहनलालगंज तहसील क्षेत्र में अवैध कब्जा मुक्त कराने के दावे कागजी कार्रवाई तक सिमट कर रह गए है। जिसका जीता जागता उदाहरण मोहनलालगंज कस्बे में देखने को मिला जहां तहसील मुख्यालय से सटी हुई 43 बीघे की झील जो किसी जमाने में मछली पालन और सिंघाड़े बोने का व्यवसाय और किसानों की रोजी-रोटी का प्रमुख जरिया होने के साथ-साथ प्रवासी पक्षियों के लिए रमणीय स्थल हुआ करती थी। इसके अलावा यह झील समूचे मोहनलालगंज कस्बे की जलनिकासी का भी प्रमुख साधन भी थी। लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि चकबन्दी के दौरान तहसील कर्मियों की मिलीभगत से अभिलेखों में हेरफेर कराकर कई लोगों ने झील अपने नाम करा ली। 2012 में मामले की भनक लगने पर तत्कालीन लेखपाल भूपेन्द्र सिंह और नायब तहसीलदार देशदीपक ने पड़ताल कराई तो खतौनी में उक्त भूमि तालाब के रुप में दर्ज होने का खुलासा हुआ था। वहीं बीते वर्ष तहसील में आयोजित सम्पूर्ण समाधान दिवस में ग्रामीणों द्वारा ऐतिहासिक झील पर अवैध कब्जे की शिकायत पर तत्कालीन जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने तत्कालीन एसडीएम सूर्यकान्त त्रिपाठी को पूरे मामले की गहनता से जांच पड़ताल कर झील से अवैध कब्जा हटवाने के आदेश दिये थे। जांच पड़ताल के बाद तत्कालीन एसडीएम द्वारा तालाब की भूमि को वापस राज्य सरकार में दर्ज करने का आदेश जारी किया साथ ही राजस्व कर्मियों से झील की नापजोख कराकर अवैध कब्जेदारो को चिन्हित कर झील को कब्जा मुक्त कराने का आदेश दिया था।लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी तहसील प्रशासन की लापरवाही के चलते झील की जमीन अवैध कब्जे से मुक्त नही करायी जा सकी।
*सरकारी अभिलेखों में आठ वर्षों से वापस हो रही झील…*
अब इसे राजधानी लखनऊ की मोहनलालगंज तहसील में तैनात अधिकारियों व राजस्वकर्मियों की लापरवाही कहे या बिल्डरो व अवैध कब्जेदारो के अवैध कब्जो पर मेहरबानी कहे कि समाचार पत्रों द्वारा पूरे मामले को आठ सालो से प्रमुखता से प्रकाशित किये जाने के पश्चात भी ऐतिहासिक झील की जमीन से अवैध कब्जा हटाने की बजाय तहसील प्रशासन की कार्यवाही सिर्फ सरकारी अभिलेखों में झील वापसी तक सिमट कर रह गयी है।
*बिल्डरो ने प्लाटिंग कर किया करोड़ो का वारा न्यारा…..*
तीस वर्ष पूर्व प्रपत्रो में हेराफेरी कर झील को अपने नाम दर्ज कराने वालो ने बिल्डरो सहित कई फैक्ट्रियों को महंगे दामो में जमीने बेच दी जिसके बाद से फैक्ट्री मालिकों व बिल्डरो ने उक्त झील की जमीन को तत्कालीन राजस्वकर्मियो की मिलीभगत से आवासीय कराकर करोड़ो रूपये के प्लाट बेच डाले, जिसके बाद उक्त जमीनो पर कुछ लोगों ने मकान भी बना डाले।
*तालाब व जलमग्न भूमि दर्ज गाटा संख्या…..*
672च,672ज,672झ,672ञ,573ख,573ग,699म, 572ख,569क सहित अन्य गाटा सख्या जो सरकारी अभिलेखो में तालाब व जलमग्न दर्ज है अवैध कब्जे हो गये।

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