लखनऊ। एक अंग्रेजी स्कूल की छोटी बच्ची वामिका ने अपने पापा से दीवाली के पहले कहा, पापा पटाखे मत छुड़ाइएगा। इसकी आवाज से पक्षी मर जाते हैं। फूलों को भी नुकशान पहुंचता है।वामिका के स्कूल में टीचर ने जो समझाया यह उसका असर था या फिर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद सरकार के आदेश का पालन। अथवा महंगाई का असर, लेकिन तो भी था, पर्यावरण के लिए बहुत ही अच्छा था। इस बार दीवाली के दौरान राजधानी लखनऊ समेत कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण बीते सालों की तुलना में बहुत कम था। इसे पर्यावरण के लिए बहुत सुखद संकेत के रूप में देखा जा रहा है। यूपी सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू करते हुए रात 8 से 10 बजे तक ही पटाखे छुड़ाने के निर्देश दिए थे। वजह चाहे जो भी हो पर यह सिलसिला जारी रहना चाहिए। अच्छी बात तो यह है कि उन बच्चों ने जिन्होंने पर्यावरण की चिंता हमसे-आपसे ज्यादा की और पटाखे खेलने के अपने शौक को दबा दिया। सूबे की राजधानी लखनऊ के आंकड़ों को अगर देखें तो पता चलता है कि लखनऊ में आतिशबाजी के दौरान पिछले तीन वर्षों में इस साल सबसे कम हादसे हुए। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लोहिया इंस्टीट्यूट, बलरामपुर अस्पताल, सिविल अस्पताल, रानी लक्ष्मी बाई अस्पताल और लोकबंधु अस्पताल समेत अन्य निजी अस्पतालों में इस साल 63 लोग पहुंचे। इनमें भी ज्यादातर बेहद मामूली रूप से जलने के कारण लाए गए थे। इसके विपरीत 2018 में यह आंकड़ा 139 और 2017 में 173 का था। सीपीसीबी के मुताबिक रविवार की रात में हवा में पीएम 2.5 की संख्या 346 माइक्रोग्राम/मी3 दर्ज की गई है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 679 माइक्रोग्राम/मी3था। वहीं पिछले साल की तुलना में पीएम 10 का स्तर 990 माइक्रोग्राम/मी3 से घटकर 536 माइक्रोग्राम/मी3 दर्ज हुआ। शोर की स्थिति के लिहाज से भी इस साल दीपावली की रात राहत देने वाली साबित हुई। 2018 में जहां अधिकतम शोर 86.9 डेसिबल दर्ज किया गया, वहीं इस साल यह आंकड़ा 82.1 पर ठहर गया।