मोहम्मद खालिद अवध की आवाज
खोड़ारे गोण्डा।:इस वैश्विक महामारी में कोरोना वायरस की वजह से पूरे देश मे हुए लाक डाउन् के कारण देश की आर्थिके व्यवस्था बिगड़ गयी है। अपितु देश ही नही पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। इस आपात स्थिति में सरकार गरीबो के लिए राशन गैस सिलेंडर रुपया पैसा इत्यादि मुहैया करा रही है। इसमें कुछ पूंजीपति और कुछ समाज सेवी भी पूरी तरह से सहयोग में लगे हुए है,और कुछ अपने प्रचार प्रसार और राजिनिति चमकाने के लिए भी सहयोग में लगे है। लेकिन वही मध्यम वर्ग बहुत पीड़ित है ,उसकी ना ही सरकार को कोई सुध है ना ही पूंजीपति को , वो अपना सम्मान बचाने के लिए भूखा भी सो जाता है। पर किसी समाज सेवी से शर्म के कारण कुछ सहयोग भी नही ले पाता है । जबकि जो प्राइवेट जॉब में है। उन्हें मिल तो कुछ नही रहा है ,लेकिन विजली बिल जमा करना है , मकान किराया भी देना है , स्कूल फीस भी देनी है और आवश्यक वस्तुओ की पूर्ति भी करनी है , आखिर कहा से लाये वो पैसे , कोई नही है सुनने वाला ,पढ़ा लिखा होने के कारण तथा अपना स्टेटस मेन्टेन रखने के लिए हमेशा कर्ज में डूबा रहता है , मजबूरी में अच्छे कपङे पहनने पड़ते है ,दिखावा भी करना पड़ता है। इनका कोई सहयोग नही करने वाला है । अब जरा उसके बारे में सोचिये..जिसने लाखों रुपये का कर्ज लेकर प्राइवेट कालेज से इंजीनियरिंग किया था और अभी कम्पनी में 5 से 8 हजार की नौकरी पाया था ( मजदूरों को मिलने वाली मजदूरी से भी कम ), लेकिन मजबूरीवश अप टू डेट की तरह रहता था,जिसने अभी अभी नयी नयी वकालत शुरू की थी। .दो -चार साल तक वैसे भी कोई केस नहीं मिलता ! दो -चार साल के बाद ..चार पाच हजार रुपये महीना मिलना शुरू होता है। लेकिन मजबूरीवश वो भी अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं कर पाता,और चार छ: साल के बाद.. जब थोड़ा कमाई बढ़ती ह। दस पंद्रह हजार होती हैं तो भी..लोन वोन लेकर घर खरीदने की मजबूरी आ जाती है बड़ा आदमी दिखने की मजबूरी जो होती है।अब घर की किस्त भी तो भरना है ,उसके बारे में भी सोचिये..जो सेल्स मैन , एरिया मैनेजर का तमगा लिये घूमता था। व्यक्ति को भले ही आठ हज़ार रुपए महीना मिले, लेकिन कभी अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं किया.उनके बारे में भी सोचिये जो बीमा ऐजेंट , सेल्स एजेंट बना मुस्कुराते हुए घूमते थे। आप कार की एजेंसी पहुंचे नहीं कि कार के लोन दिलाने से ले कर कार की डिलीवरी दिलाने तक के लिये मुस्कुराते हुए , साफ सुथरे कपड़े में , आपके सामने हाजिर,बदले में कोई कुछ हजार रुपये लेकिन अपनी गरीबी का रोना नहीं रोता है।आत्म सम्मान के साथ रहता है।मैंने संघर्ष करते वकील , इंजीनियर , पत्रकार , ऐजेंट , सेल्समेन , छोटे- मंझोले दुकान वाले, क्लर्क , बाबू , स्कूली मास्टसाब, धोबी, सलून वाले, आदि देखे हैं। अंदर भले ही चड़ढी- बनियान फटी हो,मगर अपनी गरीबी का प्रदर्शन नहीं करते हैं,और इनके पास न तो मुफ्त में चावल पाने वाला राशन कार्ड है , न ही जनधन का खाता , यहाँ तक कि गैस की सब्सिडी भी छोड़ चुके हैं ! ऊपर से मोटर साइकिल की किस्त , या घर की किस्त ब्याज सहित देना है। ,बेटी- बेटा की एक माह की फीस बिना स्कूल भेजे ही इतनी देना है, जितने में दो लोगों का परिवार आराम से एक महीने खा सकता है। परंतु गरीबी का प्रदर्शन न करने की उसकी आदत ने उसे सरकारी स्कूल से लेकर सरकारी अस्पताल तक से दूर कर दिया है। .ऐसे ही टाईपिस्ट , स्टेनो , रिसेप्सनिस्ट ,ऑफिस बॉय जैसे लोगो का वर्ग है। अब ऐसा वर्ग क्या करे ,ऐसा ही एक वर्ग मंदिर देवालयों में और गृहस्थों के घर जाकर पूजा पाठ कर अपनी आजीविका चलाने वाले ब्राह्मणों का है। मंदिरों में लाकडाऊन के चलते भक्तों की उपस्थिति भी नगण्य है। आरती में चढ़ावा ही नहीं मंदिर ट्रस्ट भी मानदेय नहीं के बराबर ही देते हैं.और दुनिया को वैभव का आशीर्वाद देने वाले के बच्चे सामान्य जीवन को तरसते हैं। उनका दर्द किसी की दृष्टि में नहीं.।