मोहम्मद खालिद
खोंडारे गोंडा। प्राइवेट विद्यालयों में अध्यापन कार्य करने वालो अध्यापको का जीवन यापन भगवान भरोसे है। कॉलेज ने तो साल भर की फीस ले ली है पर वेतन के नाम पर अध्यपको को केवल लॉलीपॉप मिल रहा है। शाशन के निर्देश के बावजूद भी कॉलेज द्वारा अध्यापकों को वेतन देने से मना किया जा रहा है। नए सत्र की शुरूवात भी भले हो गयी है, प्रवेश प्रारम्भ है लेकिन अध्यापको को वेतन देने से मना कर दिया गया है । यह स्थिति क्षेत्र के विभिन्न बड़े बड़े कॉलेज से लेकर छोटे कॉलेजों का भी है । नौकरी गवाने के डर से वह शिकायत भी नही कर सकता , वैसे भी प्राइवेट संस्थानो की सैलरी सिर्फ इतनी ही होती है कि सिर्फ आप दो वक्त की रोटी खा सकते है। इतने दिन से विश्वव्यापी महामारी के वजह से तथा कॉलेज बंद होने के वजह से जीविकोपार्जन के लिए भी संकट है। शाशन सबके लिए कुछ ना कुछ सोच है और हर संभव मदद भी कर रही है, पर प्राइवेट संस्थानो में काम करने वालो की कोई भी सुध नही लेने वाला है। वित्तविहीन कॉलेज में अध्यापन कार्य करने वालो शिक्षको का बुरा हाल है । विभिन्न शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों का कहना है कि 6 महीने से वेतन नही मिल रहा है। नाम लेकर शिकायत कर नही सकते वरना नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा , आखिर ये वर्ग कहा जाए ,कौन सुनेगा इनकी , प्रबंध तन्त्र अपने दबंगई से आये दिन बाज़ नही आते ,क्षेत्र के अधिकतम कॉलेजों का यही हाल है ।और यही हाल बिभिन्न व्यक्तिगत संस्थानों में नौकरी कर रहे लोगो की भी है । अगर वेतन ना मिलने पर प्रशाशन से शिकायत करने की सोचे भी तो तुरंत नौकरी गवानी पड़ जाएगी , एक बहुत बड़ा तबका प्राइवेट संस्थानों में काम करता है। सरकार के निर्देश के बाद भी कौन घर बैठ कर वतन मांग सकता है, पर वह प्रशाशन से शिकायत भी नही करेगा क्योंकि वहां उसके नौकरी का सवाल है, आज मजदूर वर्ग और प्राइवेट जॉब करने वालो की स्थिति ख़स्ताहाल है,। इस मामले में सरकार के सारे दावे फेल हो रहे है ,समान कार्य समान बेेतन की बात करना बेमानी है ।