मऊ-आबादी से सटे हरेक सरोवर, नदी एवं नहर के किनारे आस्था और श्रद्धा का अनूठा संगम। फिर भी न कोई हड़बड़ी न आगे बढ़ने की होड़। सभी के मुंह पर छठ मैया के गीत’पहिले पहील हम कईलीं छठ मैया बरत तोहार, करिह क्षमा छठ मैया गलती हमार’जैसे गीत। साथ में घर के पुरुष या बच्चे सिर पर फलों एवं पूजन सामग्री से लदी दउरी लिए। हरेक की मंजिल है नजदीकी जलाशय जहां पर पहले से बनी है वेदी। यह दृश्य रहा लोलार्क छठ के प्रथम दिन मंगलवार की शाम। रंग-बिरंगे परिधान में लिपटी महिलाओं का हरेक जलाशय पर सैलाब। मानों मेला लगा हो। नदी से लेकर नहर और जलाशयों तक के घाट पर रंगोली और पूजन की समुचित व्यवस्था। सभी को बस भगवान भास्कर के अस्त होने का इंतजार। हरेक हाथ में दूध और दीपक। हाथ में अर्घ सामग्री लिए जलाशय में खड़ी महिलाओं ने अस्त होते भगवान भास्कर को नमन कर अर्घ दिया। अस्ताचल को भी पूजने की भारतीय परंपरा को जीवंत करने के बाद महिलाओं ने दीप जलाकर पूजन किया। नगरीय क्षेत्र में हर घाट के इर्द-गिर्द पुलिस की मौजूदगी रही। एक दिन पूर्व तक गंदे दिख रहे पोखरों एवं घाट की सफाई कर नगर पंचायत एवं सामाजिक संगठनों ने अपने दायित्व का बखूबी निर्वहन कर मनोरम ²श्य उकेरने में सहयोग किया। व्रती महिलाओं के लिए उचित व्यवस्था में कोई भी पीछे न रहा।