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बागवानी – अपने खाते की एक एकड़ भूमि आरक्षित कर फैल दी हरियाली की चादर

विलुप्त होती वनस्पतियों को सहेज कर बांट रहे हरियाली
सुरेश कुमार तिवारी
कहोबा चौराहा गोंडा। हौंसले बुलंद हों तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है। ऐसे ही जज्बों से लवरेज है एक शख्सियत। जी हां हम जिकर कर रहे हैं नैपुर के रायपुर निवासी वंशराज मौर्य की। उन्होंने यहां की जलवायु के विपरीत अन्य जलवायु में पैदा होने वाली, विभिन्न किस्म के फलों-फूलों, मसालों व औषधियों के पौधे व वृक्ष अपने एक एकड़ के उद्यान में तैयार करने का करिष्मा कर दिखाया है। इनके द्वारा लगाये गये दो सौ पेंड़-पौधों में विलुप्त हो रही प्रजातियों के भी अनेक पेंड़-पौधे हैं। वे लोगों को प्रोत्साहित करने के साथ ही पौधे बांटकर हरियाली का दायरा बढ़ाने में लगे हैं। पर्यावरण प्रेमी का यह कारवां तो छोटा है, लेकिन मुकाम काफी बड़ा है। इनकी बागवानी की आरक्षित भूमि अब हरे-भरे बगीचे में तब्दील हो चुकी है। जिन वनस्पतियों को हम खो चले हैं उन्हे वह न केवल संजो रहे हैं, बल्कि लोगों को पहुंचा रहे हैं। रोजाना नये-नये पौधों को जुटाना और नई पौधें तैयार करना इनकी जिंदगी का हिस्सा है।

नौकरी छोड़ बागवानी में लगाया दिल
वंशराज मौर्य अपने पिता की इकलौती संतान थे। वर्ष 1980 मेंं इनका चयन लेखपाल के पद पर हुआ था। इनका मन नौकरी में नहीं लगा और त्याग पत्र दे दिया। और एक एकड़ खेत अपने खाते की  बागवानी के लिए आरक्षित कर देश के कई प्रांतों से फल-फूल व वनस्पतियों का संग्रह करना शुरू कर दिया। इसके लिए शहरों में लगने वाली पौधशालाओं  नागपुर, पंतनगर व कुमार गंज स्थिति कृषि विश्वविद्यालयों का भ्रमण कर जानकारी हासिल की। इसके बाद समय के साथ बागों में  बहार आती गई। चार दशक में  देश के ही नहीं विदेशी फल-फूल हो गये। बकौल वंशराज बागवानी के लिए आरक्षित एक एकड़ भूमि के अतिरिक्त दो एकड़ भूमि और है। उन्में सब्जी, गन्ना, धान, गेहूं की खेती के साथ बागवानी से लगभग चार से पांच लाख रुपये की आमदनी हो जाती है। उनके इस अभियान में उनका परिवार भी सहयोग करता है।
हर किसी को लुभाती है हरियाली
इन्होंने अपने बगीचे में दो सौ से भी ज्यादा पेंड़-पौधों की प्रजातियां संजो रखी है। इनके अलावा पांच तरह की तुलसी, वेलपत्र, लैमन ग्रास, काला वांसा, जलजमनी, स्तावर, वोगनबेलिया, हरड़, बहेड़ा, अंजीर और आंवला के अलावा हर तरह की पारंगत और उपयोगी वनस्पति की प्रजाति यहां मौजूद है। इन्होंने यहां नर्सरी भी विकसित की है, जिसमें हर साल हजारों पौधे तैयार होते हैं। जिले के कई गांवों के लोग इनकी मुहिम से जुड़ रहे हैं, जिन्हें ये अपनी नर्सरी से पौधे भेंट करते हैं।
इनकी है वाटिका में मौजूदगी
तेजपत्ता, इलायची, इरानी खजूर, बिना बीज का अमरुद, नीबू की दस प्रजातियां, चकोतरा की दो प्रजातियां, छैटा- बड़ा तीन प्रकार के नारियल, लीची, सेब, नाशपत्ती, वालम खीरा, चीकू,आंवला की दो प्रजातियां कृष्णा आंवला व हाथी झूल, रुद्राक्ष, चंदन सफेद व लाल, अमरुद 15 प्रजातियों के, पान का पौधा दो ब्राइटी का, हींग, बेर, लौंग, धूप का पेंड़,अनानास व मुसम्मी इनकी वाटिका की शोभा बढ़ा रहे हैं।

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