अजीजुद्दीन सिद्दीकी
कहोबा चौराहा गोंडा। इक्कीसवें रोजे से तीसवें रोजे तक के दस दिन/दस रातें रमजान माह का आख़िरी अशरा कहलाती है। चूंकि आख़िरी अशरे में ही लैलतुल क़द्र/शबे-क़द्र वह मगफिरत रात की गुनाहों से माफी की रात्रि है जिसमें अल्लाह तमाम रात जागकर किया जाता है तथा जिस रात की बहुत अज्र की रात माना जाता है।क्यों कि शबे-कद्र से ही कुरआन का नुजूल या शुरू हुआ था , इसलिए इसे दोजख से निजात का अशरा भी कहा जाता है। शरई तरीके से रखा गया ‘रोजा’ दोजख से निजात दिलाता है। कुरआने-पाक के सातवें पारे की सूरह उनाम की चौंसठवीं आयत में पैग़म्बरे-इस्लाम हजरत मोहम्मद को इरशाद फरमाया- ‘आप कह दीजिए कि अल्लाह ही तुमको उनसे निजात देता है।’ यहाँ यह जानना जरूरी होगा कि ‘आप’ से मुराद हजरत मोहम्मद से है और ‘तुमको’ से यानी दीगर लोगों से है। मतलब यह हुआ कि लोगों को अल्लाह ही हर रंजो-गम और दोजख़ से निजात देता है। सवाल यह उठता है कि अल्लाह तक पहुंचने और निजात को पाने का रास्ता और तरीका क्या है? इसका जवाब है कि सब्र और सदाकत सच्चाई के साथ रखा गया रोजा ही अल्लाह तक पहुंचने और दोजख से निजात पाने का रास्ता और तरीका है।