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उच्च न्यायालय की सलाह भी राज्य सरकार के लिए बेकार

कर्मचारियों के लिए लालीपाॅप साबित हुई ‘‘सेवा लोक अदालत’’
कर्मचारियों की सेवा सम्बंधी मामलों पर गम्भीर नही शासनःहरिकिशोर
लखनऊ। सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारियों के सेवा सम्बंधी मामलों को निपटाए जाने के लिए उच्च न्यायालय की मंशानुसार 30 मई 2008 को सरकार और कर्मचारियों के बीच तालमेल बिठाकर विवाद का निपटारा करने के लिए विभागीय विवाद फोरम बनाया गया था। इसके तहत शासन ने यह भी निर्णय लिया था कि हर तीन महीने में सेवा संबंधी मामलों के लिए ‘सेवा लोक अदालत’ हर तीन महीने के एक शनिवार को लगाकर अधिकारी/कर्मचारी तथा सरकार/शासन के बीच चल रहे विवाद को आपसी तालमेल से निपटाया जाए ताकि इससे सरकार और कर्मचारी दोनों को अनावश्यक न्यायालय के चक्कर न लगाने पड़े और अनावश्यक मुकदमेंबाजी भी कम हों। लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बाॅत यह कि शासन लम्बा अरसा बीत जाने के बाद भी एक भी ‘सेवा लोक अदालत’ का आयोजन नही कर सका। कुल मिलाकर ऐसी स्थिति दिखने लगी है कि राज्य सरकार के लिए माननीय उच्च न्यायालय की सलाह भी बेकार साबित हो रही है। यही नही सरकार और अधिकारी कर्मचारियों के बीच हजारों की संख्या मे चल रही मुकदमें बाजी को कम करने के लिए पहले विभागीय समाधान फोरम की संख्या दो से बढ़ाकर चार भी कर दी गई थी।
कर्मचारियों और शासन के बीच चल रही मुकदमें बाजी को लेकर राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद की एक बैठक को सम्बोधित करते हुए परिषद के अध्यक्ष हरिकशोर तिवारी ने कहा कि विभिन्न न्यायालयों में भारी संख्या में योजित हो रहे मुकदमों के निस्तारण में जहाॅ एक ओर अत्याधिक समय और आर्थिक व्ययभार भी पड़ता है। हालाॅकि सरकार को तो ऐसे मुकदमों से कोई फर्क नही पड़ता लेकिन पीड़ित कर्मचारियों को अपना हक पाने के लिए पैरवी करने में भारी दिक्कत होती है। इस बैठक में महामंत्री शिबरन सिंह यादव, वरिष्ठ उपाध्यक्ष यदुवीर सिंह, भूपेश अवस्थी,अविनाश चन्द्र श्रीवास्तव, अमिता त्रिपाठी, संजीव गुप्ता, अमरजीत मिश्रा, अनुज शुक्ला ने सम्बोधित किया।  बैठक में बताया गया कि सरकार और उनके अधिनस्थ कर्मचारियों के बीच चलने वाली मुकदमें बाजी की संख्या को देखते हुए मा. उच्च न्यायालय की मंशा पर 30 मई 2008 को मा. उच्च न्यायालय में लम्बित ऐसे वादों जिनमें सरकार पक्षवार है के त्वरित निस्तारण के लिए ‘ विभागीय विवाद समाधान फोरम का गठा किया गया। पहले यह फोरम दो के रूप में बनाया गया था लेकिन बाद में तत्कालीन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सम्पन्न बैठक में आवश्यकता को देखते हुए दो की जगह चार ‘‘ विभागीय विवाद समाधान फोरम’’ बनाकर इनमें सभी संवर्ग  एवं विभिन्न कर्मचारी संगठन, एसोसिएशन एवं परिषद के पदाधिकरियों को शामिल किया गया। यही नही इन फोरमों में शासन स्तर पर प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन, वित्त, न्याय के अफसरों के साथ महाधिवक्ता द्वारा नामित अधिवक्ता को सदस्य बनाया गया था। पहले एक जुलाई 14 और फिर 19 जून 15 तदोपरान्त 27 मई 16 को 3 जी.पी. आदेश जारी हुए लेकिन सेवा संबंधी मामलों के आपसी निपटारें के लिए एक भी ‘सेवा लोक अदालत’ नही लगाई गई। श्री तिवारी ने यह भी बताया कि उक्त आदेश मा. उच्च न्यायालय के आदेश पर जारी हुए इसके बावजूद एक भी सेवा लोक अदालत नही लगाई गई। यही नही 27 मई 16 को जो आदेश किया गया उसमें यह भी नही देखा गया कि जो फोरम बनाए गए थे उनके अधिकत्तर सदस्य सेवा निवृत्त भी हो गए। उन्होंने बताया कि इस सम्बंध में तत्तकालीन मुख्यसचिव श्री दीपक सिंघल को परिषद की तरफ से पत्र भेजकर वस्तु स्थिति से अवगत कराया था, इस पर तत्कालीन मुख्य सचिव ने एक परिपत्र जारी करते हुए इस व्यवस्था को तत्काल लागू कराकर कर इसे सरकार और कर्मचारियोंके हित में बताते हुए प्रमुख सचिव न्याय को निर्देशित किया था उस परिपत्र का भी अब तक अनुपालन नही किया गया। बैठक में लगभग आठ वर्ष से अधिक समय पूर्व बने फोरमों और सेवा सम्बंधी लोक अदालतों को यर्थाथ के धरातल पर न लाए जाने पर चिन्ता जताते हुए परिषद के नेताओं ने शासन के आला अफसरों को कर्मचारी और सरकार के बीच चलने वाली मुकदमें बाजी के लिए जिम्मेदार बताते हुए मुख्यमंत्री श्री आदित्य नाथ ‘योगी’ से इस मामले में मध्यस्था करने की मांग की है।

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