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अवैध रूप से ऐतिहासिक मोती झील को पाट कर हो रहे है पक्के निर्माण

एलडीए और नगर निगम की लापरवाही के चलते जमुना झील और पाण्डेय का तालाब पहले ही गायब हो चुके
लखनऊ। योगी सरकार में भूमाफियाओं के हौसले इतने बुलन्द हो चुके है कि बिना खौफ के सरकारी जमीन पर कब्जे कर उन पर अवैध निर्माण कर करोड़ों के वारे-न्यारे कर रहै है। थाना बाजारखाला के अन्र्तगत मालवीय नगर में ऐतिहासिक मोती झील भी इनके चंगुल में आ चुकी है। हजारों वर्ग फीट पहले ही पाट कर उसपर पक्के निर्माण हो चुके है और ताजा मामले में पचास हजार वर्ग फीट से अधिक झील को कूड़ा और मिट्टी डाल कर और निर्माण के लिये पाटा जा रहा है। स्थानीय निवासियों की माने तो काफी वर्षो पूर्व इस ऐतिहासिक झील के सौन्दर्यीकरण के प्रयास हुये थें इसके चारो तरफ रेलिंग लगाकर पैदल चलने के लिये रास्ता बनाया गया था। परन्तु समय के साथ और सरकारी उपेक्षा के चलते सब खत्म हो गया है साथ ही थोड़ी सी बची मोतीझील का अस्तित्व भी खत्म होने की कगार पर है रही सही कसर भूमाफिया पूरी कर रहे है। अवैध कब्जों और अवैध निर्माण के कारण जमुना झील और पाण्डेय का तालाब पहले ही गायब हो चुका है। कुछ महीनों पहले जिला प्रशासन ने माधव सिनेमा के सामने हैदरगंज रोड पर झील के किनारे बने पक्के अवैध निर्माण को हटवा दिया था परन्तु उसी स्थान पर फिर से झील को कूड़े से पाटकर निर्माण हो गये साथ ही मालवीय नगर की तरफ नये निर्माण खुलेआम झील को पाट कर हो रहे है। अनुमान के अनुसार अब तक अरबों रूपयों का खेल हो चुका है। साथ ही लखनऊ विकास प्राधिकरण और नगर निगम के ंसंबधित प्रशासनिक अधिकारियों के साथ थाना बाजारखाला की संलिप्तता सामने आ रही है। इसी थाना क्षेत्र में एवरेडी चैराहे के पास रोड पर ही नजूल की जमीन पर बने अवैध तिमंजिला भवन में लाखों रूपयों का वारा-न्यारा हुया था। जिसमें थानाध्यक्ष बाजार खाला, मिल एरिया पुलिस चैकी प्रभारी, पूव सभासद, वर्तमान सभासद के साथ एलडीए के है अभियन्ता सब षामिल थें। अखबार में छपी खबर के बाद मामले को संज्ञान में लेते हुये अवर अभियंता ने उक्त भवन को सील करने के आदेश पारित कर दिये थे। ऐसे में इतना बड़ा खेल बिना प्रशासनिक मिली भगत के संभव नहीं हो सकता है। एलडीए और नगर निगम के अभिलेखों के अनुसार करीब दस एकड़ क्षेत्रफल की मोती झील पर अवैध कब्जों के खिलाफ स्थानीय मोती लाल यादव ने मार्च-2016 में माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिस पर उच्च न्यायालय ने लखनऊ विकास प्राधिकरण और नगर निगम को अतिक्रमण हटाने व अतिक्रमणकारियों पर सख्त कार्यवाही करने का आदेश दिया था। लंकिन उच्च न्यायालय का आदेश आज मजाक बनता दिखायी दे रहा है। भूमाफियायों में उच्च न्यायालय के आदेश का भी खौफ नहीं है। तत्कालीन एलडीए उपाध्यक्ष मुकेश कुमार मिश्राम के समय मोती झील की सफाई और सौन्दर्यीकरण के लिये चैबीस करोड़ रूपये स्वीकृत किये गये थें जिसम प्रथम चरण के कार्य के लिये नौ करोड़ निर्गत किये गये थे ताकि इसमें गिरने वाले सीवेज को रोका जा सके तथा इसका सौन्दर्यीकरण किया जा सके। परन्तु एलडीए ने सन् 1973 में बने उ0प्र0 अर्ब प्लानिंग एंड डेवलपमेन्ट एक्ट के तहत नालियों और सड़कों के विकास व निर्माण के नाम पर संरक्षण के बजाय जल स्रोतों को भी बिल्डरों को बेचने का कार्य कर दिया। आज भी अभिलेखों में मोती झील लखनऊ के एक सुन्दर पर्यटक स्थल के रूप में दर्ज है जिसे आज कोई दंखना तो दूर पास से गुजरना भी उचित नही समझते है। उच्च न्यायालय के आदेश का मजाक, पुलिस प्रशासन अधिकारियों की मिली भगत के चलते एक ऐतिहासिक धरोहर के अस्तित्व को मिटते हुये स्थानीय निवासी देख तो रहे है परन्तु भूमाफियाओं की दबंगई और जिला प्रशासन की लाचारगी को देखते हुये कोई कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं है।

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