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सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, पीछे नहीं चलूंगा : चन्द्रशेखर

साम्प्रदायिक राजनीति के आधार पर यूपी में चुनाव जीतना आसान नहीं
लखनऊ। नगीना क्षेत्र से जीतकर संसद पहुंचे आजाद समाज पार्टी कांशीराम के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि वह सदन में एक स्वतंत्र आवाज बने रहेंगे और सत्ता पक्ष और विपक्ष के साथ नहीं जाएंगे। चंद्रशेखर ने कांग्रेस-सपा के पीडीए गठबंधन पर भी हमला बोला और कहा है कि वह चाहते हैं कि उनके अधीन रहे, जबकि वह ऐसा नहीं होने देंगे। सांसद चंद्रशेखर ने एक कार्यक्रम में अपनी राय क्लियर कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि हम भेड़ नहीं हैं जो किसी के पीछे चलेंगे। हम अपने लाखों लोगों की उम्मीद हैं और इसलिए स्वतंत्र खड़े रहेंगे। चंद्रशेखर ने अपने पहली बार संसद में जाने को लेकर किस्सा शेयर किया और यह भी बताया है कि कैसे उन्हें सपा-कांग्रेस किसी ने जरूरत न पड़ने तक तवज्जो नहीं दी। जब मैं पहली बार संसद गया तो मैं खाली बेंच पर अकेला बैठा था। मैं नया था, मुझे नहीं पता था। मुझे लगा कि विपक्ष में मेरे दोस्त अपने साथ बैठने के लिए कहेंगे। लगा कि कहेंगे कि हम दोनों भाजपा के खिलाफ लड़ रहे हैं और हमें साथ मिलकर काम करना चाहिए। तीन दिन वहां बैठने के बाद मुझे एहसास हुआ कि किसी को फर्क नहीं पड़ता कि चंद्रशेखर कहां बैठे हैं।स्पीकर के चुनाव में कांग्रेस द्वारा मांगी गई मदद का जिक्र करते हुए चंद्रशेखर ने कहा कि जब स्पीकर का चुनाव आया तो कांग्रेस के एक नेता ने फोन कर कहा कि उन्हें उनकी मदद करनी चाहिए। चंद्रशेखर ने कहा कि मैंने उन्हें सहमति जताई लेकिन उन्होंने डिवीजन का प्रस्ताव ही नहीं रखा। मैं न दक्षिणपंथी रहूंगा और न वामपंथी। मैं बहुजन हूं और अपने एजेंडे के साथ अकेला खड़ा रहूंगा। मैंने विपक्ष के साथ वॉकआउट नहीं किया। हम भेड़ नहीं हैं जो किसी के पीछे चलें। हम अपने लाखों लोगों की उम्मीद हैं। हम छोटे राजनीतिक कार्यकर्ता हो सकते हैं लेकिन हम अपने समाज के नेता हैं। अगर दूसरों का अनुसरण करते रहेंगे तो हमारे लोगों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचेगी।
चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि वह राज्य में कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन चाहते थे, लेकिन कोई उन्हें नगीना देने के लिए तैयार नहीं हुआ। आजाद ने कहा कि 2014 से ही दलितों को डर था कि संविधान बदल दिया जाएगा। बीजेपी कार्यकर्ताओं और उसके थिंक टैंक आरएसएस की लॉन्ग टर्म योजना रही है। वे आज कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन वे कभी भी संविधान के समर्थन में नहीं थे। शुरुआत 2014 से हुई और 2024 इसका चरम है। बीजेपी अयोध्या हार जाती है और प्रधानमंत्री इतने कम अंतर से जीतते हैं, तो यह दर्शाता है कि सांप्रदायिक राजनीति के आधार पर यूपी में चुनाव जीतना अब आसान नहीं।

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