सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप से इनकार किया,हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ फाइनेंसर द्वारा दायर अपील खारिज
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एक परिवहन वाहन का फाइनेंसर, जिसके लिए पट्टा या गिरवी रखने को लेकर समझौता किया गया हो, वाहन का कब्जा लेने की तारीख से उत्तर प्रदेश मोटर वाहन कराधान अधिनियम 1997 के तहत कर के लिए उत्तरदायी है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिसंबर 2019 के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि परिवहन वाहन का फाइनेंसर साल 1997 के अधिनियम के तहत वाहन का कब्जा लेने के बाद कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ वाहन की खरीद के लिए कर्ज देने वाले फाइनेंसर द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर कर भुगतान के एक महीने या अधिक समय तक वाहन का इस्तेमाल नहीं किया गया, तो वाहन का मालिक 1997 के अधिनियम की धारा 12 के तहत धन वापसी के लिए आवेदन कर सकता है, लेकिन धन वापसी की मांग के लिए प्रावधान में दिए गए सभी शर्तों का पालन करना होगा। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि फाइनेंसर ने परिवहन वाहन की खरीद के लिए कर्ज दिया था और कर्ज के भुगतान में चूक पर वाहन अपने कब्जे में ले लिया था। पीठ ने वर्ष 1997 के उप्र मोटर वाहन अधिनियम और वर्ष 1988 के अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि एक फाइनेंसर, जिसने कर्ज का भुगतान न होने के कारण वाहन अपने कब्जे में ले लिया हो, वह उसका मालिक है।