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शाख बचाने के लिए सिंबल पर निकाय चुनाव लडेगा विपक्ष 

लखनऊ,। ( आरएनएस )हाल में सम्पन्न हुए 17 वीं विधानसभा चुनाव में पीएम नरेन्द्र मोदी की आंधी में समूचा विपक्ष चित्त हो गया। ऐसे में अब विपक्ष के समक्ष शाख बचाने की सबसे बडी चुनौती है। क्योंकि दो साल बाद 2019 में लोकसभा चुनाव होंगे। वहीं समर्थकों को पांच साल तक सहेजना एव उनसे सम्पर्क बनाये रखने की भी कठिन काम है। शायद इसीलिए विपक्षी दल इस बार निकाय चुनाव सिंबल पर लडने का ऐलान कर रहे है। छोटे चुनावों से आम तौर पर दूर रहने वाली बसपा भी इस चुनाव को बडी तनमयता से लडने की तैयारी कर रही है।
इस विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद समूचा विपक्ष सकते में है। उसके समक्ष अपना अस्तित्व बचाने एवं भाजपा के खिलाफ लडने की दोहरी चुनौती है। क्योंकि दो साल बाद लोकसभा चुनाव होने जा रहे है। इसमें भी यदि यहीं हाल रहा तो विपक्षी दल अवशेष बन कर रह जायेंगे। हार के बाद पांच साल तक संगठन को बरकरार रखना समर्थकों से सम्पर्क बनाये रखने की भी बडी चुनौती है। क्योंकि समर्थकों को सत्ता के करीब जाने में समय नहीं लगता। इन्हीं सब कारणों को लेकर सपा, बसपा एवं कांग्रेस अलग अलग अपने अपने सिंबल पर निकाय चुनाव लडने जा रहे है। इन दलों में इस चुनाव को लेकर बेठकों का दौर भी आरंभ हो चुका है। हालाकि जो माहौल वर्तमान में है उसे देखते हुए विपक्षी दल कोई बडा परिवर्तन नहीं ला सकेंगे। क्योंकि भाजपा का शहरों में जनाधार विपक्ष में रहने पर दिखता रहा है। अब तो वह सत्ता में है।
हार के बाद सपा ने तो सदस्यता अभियान आरंभ कर दिया। इसके जरिये वह अपने कार्यकर्ताओं के करीब रहेगी। पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने निकाय चुनाव सिंबल पर लडने का ऐलान कर दिया है। जबकि पिछला चुनाव यह बिना सिंबल के ही लडी थी। जो जीता वहीं सपा का हो गया। इस बार बाकायदा एक नेता को टिकट देकर लडायेगी। जिसे पार्टी का पूरा वोट दिलाने का प्रयास किया जायेगा।
बसपा तो छोटे चुनावों से आम तौर पर दूर रहती है। यदि लडती भी है तो वह बिना सिंबल के। लेकिन इस बार हार में हैट्रिक मार चुकी बसपा के समक्ष करो या मरो जैसे हालात है। नेताओं कार्यकर्ताओं को सहेजना बडी चुनौती है। शायद इसीलिए बसपा
सुप्रीमों मायावती ने निकाय चुनाव में भी कैडिडेट उतारने एविं संबल पर लडने का ऐलान किया है। क्योकि विधान सभा चुनाव के पूर्व बसपा में ऐसी भगदड मची कि कई दिग्गज भाजपाई हो गए।। अब जो नेता बचे है उन्हें साथ लेकर चलना होगा। वहीं बेस वोट बैंक में भी सेंध लगाने का भाजपा द्वारा भरसक प्रयास किया जा रहा है इसे भी रोकने की चुनौती है। इस चुनाव के जरिये पार्टी नेता समर्थकां से मिल सकेंगे।
खोया जनाधार हासिल करने के लिए कांग्रेस ने भी सपा के साथ गठबंधन से दूरी बनाना आरंभ कर दिया है। पार्टी इस चुनाव में सपा प्रत्याशियों के समक्ष अपना कंडीडेट खडा करेगी। घोषित प्रत्याशियों के समर्थन में पार्टी नेताओं की चुनावी सभाएं भी आयोजित करने की तैयारी चल रही है। देखना होगा भाजपा को हराने के लिए विपक्ष की यह अनोखी रणनीति कितनी कारगर होगी। इसका आकलन तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही तय होगा।

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