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समाजीकरण की कोख में पनपता है भ्रष्टाचार का बीज

मनुष्य एक जैविक प्राणी की भांति इस पृथ्वी पर जन्म लेता है तथा इसके पश्चात ही उसके सीखने की प्रक्रिया का शुभारंभ हो जाता है सीखने की यही प्रक्रिया सामाजिकरण कहलाती है। समाजीकरण ही उसे जैविक प्राणी से एक सामाजिक प्राणी बनाता है। यहीं वह समाज के नैतिक मूल्यों को सीखता है।
प्रसिद्ध समाजशास्त्री टालकट पारसंस कहते हैं कि बच्चा उस जैविकीय पत्थर के समान होता है जिसे जन्म के समय समाज रूपी तालाब में फेंक दिया जाता है जिसमें रहकर वह अपना समाजीकरण करता है और समाज का अंग बन जाता है। विश्व का प्रत्येक देश आज भ्रष्टाचार जैसी समस्या से पीड़ित है। तथाकथित वैश्वीकृत आधुनिक सभ्य समाज में भ्रष्टाचार की दर उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। आज व्यक्ति ना सिर्फ भ्रष्ट होता जा रहा है अपितु उसका नैतिक पतन भी हो रहा है जिसकी नींव परिवार में ही समाजीकरण के दौरान डाल दी जाती है। रिश्वत लेना या देना, व्यक्तिगत लाभ लेना या पहुंचाना, भाई-भतीजावाद, चोरी, बेईमानी और गैरकानूनी तरीके से समाज के प्रतिमानों के विरुद्ध आचरण करना, मनी लॉन्ड्रिंग और घोटाला करना आदि सभी भ्रष्टाचार के अवयव हैं। भ्रष्टाचार से अर्जित आय व्यक्ति के लिए अतिरिक्त आय का महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है परिवार और समाज दोनों ही इसे अपनी नैतिक स्वीकृति प्रदान कर चुके हैं। अत्याधुनिक युग में भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति हेतु लोग भ्रष्ट आचरण और गैरकानूनी कार्य करने में तनिक भी पीछे नहीं हटते। अपितु कानून की लचकता एवं विलंबित सजा का प्रावधान उन्हें भ्रष्टाचार जैसी गतिविधियों में सक्रिय सहभागिता हेतु प्रेरित करती है। जहां एक तरफ भ्रष्टाचार हेतु गरीबी ,अति शीघ्र समृद्ध होने की आकांक्षा, कानूनों का लचीलापन, राजनीतिक अपराधीकरण आदि कारक जिम्मेदार है, तो वहीं दूसरी तरफ दोषपूर्ण समाजीकरण और नैतिक व चारित्रिक पतन भी भ्रष्टाचार हेतु बराबर के जिम्मेदार हैं। आज भौतिकतावादी युग में लोगों द्वारा अपनी संतानों को प्रारंभ से ही नैतिकता के बजाय आर्थिक महत्व की महत्ता की ओर ज्यादा आकर्षित किया जाता है। उन्हें बराबरी के बजाय प्रतिस्पर्धी बनाया जाता है। तत्कालीन जारी वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत का स्थान 80 वां है। इससे ज्ञात होता है कि भ्रष्टाचार की जड़े काफी गहराई तक पहुंच चुकी हैं। प्रशासनिक आलाकमान से लेकर राजनीतिक गलियारे तक सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। भारतीय समाज में एक कहावत भी प्रचलित है कि चोर-चोर मौसेरे भाई अर्थात भ्रष्टाचारी व्यक्तिगत लाभ हेतु भ्रष्टाचार में एक दूसरे का सहयोग करते हैं। भ्रष्टाचार आज प्रत्येक समाज के लिए एक विकट चुनौती बनकर सामने उभरा है। बिना इस पर नियंत्रण के कोई भी समाज या देश विकास की सीढ़ियों पर अग्रसर नहीं हो सकता। यद्यपि सरकार द्वारा भ्रष्टाचार पर नियंत्रण हेतु काफी प्रयास किए जा रहे हैं जैसे एंटी करप्शन ब्यूरो का गठन, डिजिटल ट्रांजेक्शन को प्रोत्साहन आदि। तथापि इनमें उत्तरोत्तर वृद्धि देखी गई है। भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने हेतु सर्वप्रथम सरकार को लोगों में नैतिक जागृति हेतु स्कूल व कॉलेजों में नैतिक शिक्षा को अनिवार्य करना चाहिए, कानूनों को और मजबूत करना चाहिए, अत्याधुनिक डिजिटल तकनीकों की सहायता से एक निगरानी तंत्र निर्मित करना, चाहिए, स्वच्छ व स्वस्थ राजनीतिक परिवेश निर्मित करके दोषियों को शीघ्र व कठोर सजा देने का प्रावधान करना चाहिए आदि प्रयासों से भ्रष्टाचार पर काफी हद तक लगाम लगाया जा सकता है और तभी इस वैश्विक चुनौती से निपटा जा सकता है।

अजय कुमार शुक्ला
शोधार्थी:- लखनऊ विश्ववद्यालय

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