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कोरोना महामारी में डिजिटल मीडिया एक वरदान है या अभिशाप

कोरोना महामारी ने तीव्र गति से दौड़ती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था का चक्का जाम कर दिया है। ऐसी स्थिति में हिंदू-मुस्लिम, गरीब-अमीर, किसान, मजदूर, छात्र सभी लॉकडॉउन की वजह से जहां भी थे वहीं रहने को मजबूर हुए। लोगों ने डिजिटल मीडिया जैसे सोशल साइट्स, फेसबुक, व्हाट्सएप आदि माध्यम से अपनों से जुड़नें का प्रयास किया। कोरोना महामारी में डिजिटल मीडिया की सहायता से जहां एक ओर कुछ लोगों ने संप्रदायिकता को बढ़ावा देने का काम किया और इससे सामाजिक समरसता को क्षति पहुंची। तो वहीं दूसरी तरफ विगत कुछ दिनों में ऐसे भी उदाहरण हमें देखने को मिले जिसने सामाजिक सुदृढ़ता को बढ़ावा दिया। ऐसी ही एक तस्वीर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से आई जिसमें एक हिंदू के शव को मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कंधा दिया क्योंकि लॉकडॉउन की वजह से मृतक के सगे संबंधी उसकी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो सके। इस तस्वीर ने हमारी गंगा-जमुनी तहजीब को एक बार पुनः जीवंत कर दिया। इसके साथ ही डिजिटल उपकरणों के माध्यम से खाद्य एवम् अन्य दैनिक आवश्यकता की चीजों की सप्लाई चैन को और मजबूत कर स्थानीय प्रशासन ने लॉक डाउन को सफल बनाने का प्रयास किया और इससे कोरोना संक्रमण की चैन को तोड़ने में सहायता भी मिली। इस प्रकार डिजिटल उपकरण जहां एक तरफ समाज की सामाजिक सुदृढ़ता और अखंडता हेतु वरदान साबित हो रहा तो वहीं दूसरी तरफ सामाजिक विघटन और विचलन के रूप में अभिशाप।।
अजय कुमार शुक्ला
शोधार्थी:- लखनऊ विश्वविद्यालय

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