समाजीकरण की कोख में पनपता है भ्रष्टाचार का बीज
मनुष्य एक जैविक प्राणी की भांति इस पृथ्वी पर जन्म लेता है तथा इसके पश्चात ही उसके सीखने की प्रक्रिया का शुभारंभ हो जाता है सीखने की यही प्रक्रिया सामाजिकरण कहलाती है। समाजीकरण ही उसे जैविक प्राणी से एक सामाजिक प्राणी बनाता है। यहीं वह समाज के नैतिक मूल्यों को
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