Home > सामान्य ज्ञान > व्लादीवोस्तोक बैठक में कूटनीति की बदलती धुरी

व्लादीवोस्तोक बैठक में कूटनीति की बदलती धुरी

पुष्परंजन
घर में नहीं हैं दाने, अम्मा चली भुनाने। जीडीपी हुआ पांच प्रतिशत। ध्वस्त कारोबार, और हर रोज लाखों नौकरियां जाने की बुरी खबरों से बेहाल देश के प्रधानमंत्री रूस के सुदूर पूर्वी इलाके के विकास के वास्ते एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन दे आते हैं, तो ऐसी कहावत स्वतरू ताजा हो जाती है। व्लादीवोस्तोक से पीएम मोदी लौट आए हैं। पीएम मोदी के साथ एक वृहदाकार प्रतिनिधिमंडल भी व्लादीवोस्तोक गया था। उसमें चार राज्यों के मुख्यमंत्री, 150 बिजनेसमैन शामिल थे। इस यात्रा में 5 अरब डॉलर के 50 समझौते भी हुए हैं। इनमें कोल, डायमंड, खनन, रेयर अर्थ, टिंबर, पल्प एंड पेपर, पर्यटन जैसे विषय शामिल हैं। प्रशांत महासागर का सबसे महत्वपूर्ण रूसी बंदरगाह शहर व्लादीवोस्तोक अमेरिका के होनोलुलू-हवाई से ज्यादा करीब है, बजाय रूसी नगर सोची के। मास्को दूर है, ऑस्ट्रेलिया का शहर डार्विन, व्लादीवोस्तोक से ज्यादा नजदीक है। भू-सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस पूर्वी इलाके को उद्योग-व्यापार से समृद्ध करने का बीड़ा प्रेसिडेंट पुतिन ने 2015 में उठाया था। संगठन का नाम रखा, इस्टर्न इकोनॉमिक फोरम। 4 से 5 सितंबर 2019 को दो दिन के वास्ते व्लादीवोस्तोक के फार इस्टर्न फेडरल यूनिवर्सिटी में इस फोरम की पाचवीं बैठक थी, जिसके लिए पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां पर उपस्थित थे। रूस के सुदूर पूर्वी इलाके में पांच साल में 3.8 ट्रिलियन रूबेल की अर्थव्यवस्था खड़ी हो गई है। इस सम्मेलन से पहले यहां पर 1780 नई परियोजनाओं में दुनिया भर के 17 देशों और कंपनियों ने निवेश कर रखा था। इन 17 देशों में चीन, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, वियतनाम के नाम आगे हैं। इस्टर्न इकोनॉमिक फोरम के अधिकारी बताते हैं कि 2014 से अबतक 32 फीसद विदेशी पूंजी निवेश हमारे इलाके में हुआ है। 230 नये इंटरप्राइजज विगत दो वर्षों में नमूदार हुए हैं। इस समय 20 एडवांस इकोनॉमिक जोन, और पांच फ्री पोर्ट इस इलाके में क्रियाशील हैं। फार ईस्टर्न रीजन के लिए ये नाकाफी हैं, इसे और अधिक विस्तार देने के वास्ते श्रशियन आर्कटिक जोनश् बनाया जा रहा है। रूस के पास कोई आर्थिक संकट नहीं है। सरकार फार इस्टर्न जोन में निवेशकों को आर्थिक सहयोग के साथ अधोसंरचना में भी मदद दे रही है। वहां की सरकार 70 हजार लोगों को मुफ्त में जमीनें, आवास की सुविधाएं, फार्म हाउस तक मुहैया करा चुकी है। इस्टर्न इकोनॉमिक फोरम के आंकड़े बताते हैं कि प्रेसिडेंट पुतिन ने पांच वर्षों में 60 देशों को इस इला$के से जोड़ा है। 2018 तक 6002 भागीदार यहां आ चुके थे। तेल-गैस, टेलीकम्युनिकेशंस, पोर्ट, बैंकिंग, आईटी, कार्गो ट्रांसपोर्ट, एग्री बिजनेस जैसे विविध क्षेत्रों में निवेश के निमित्त 220 समझौते किये जा चुके हैं, जिसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तीन हजार 108 ट्रिलियन रूबेल की पूंजी लग चुकी है। ऐसे में कोई कह नहीं सकता कि रूस के इस पूर्वी इलाके में किसी तरह की बदहाली है। यहां उद्योग-धंधे चकाचक चल रहे हैं। फिर भी पीएम मोदी एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन देने की घोषणा कर आते हैं, तो इसे वाहवाही लूटना नहीं तो क्या कहेंगे? इस तरह से दानवीर कर्ण वाली मुद्रा में देश के प्रधानमंत्री हों, तो पुतिन जैसे नेता कश्मीर पर भारत का पक्ष ध्यान से सुनेंगे ही। पीएम मोदी ने व्लादीवोस्तोक के मंच से दो टूक कहा कि कश्मीर हमारा अंदरूनी मामला है, इसमें हम किसी देश द्वारा दखल बर्दाश्त नहीं करेंगे। पुतिन की इस विषय पर चुप्पी हामी जैसी थी। रूस, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उन स्थायी सदस्य देशों में से एक है, जिसने कश्मीर को भारत का अंदरूनी मामला माना है। उस रणनीति को दुनिया के कुछेक देश समझ रहे हैं कि पीएम मोदी फ्रांस में जी-7 की बैठक से लेकर रूस के व्लादीवोस्तोक तक क्यों विश्व नेताओं को आइने में उतारने के वास्ते सक्रिय हो गये हैं। इस समय दो ही ऐसे विश्व नेता हैं, जिनकी इमरान खान जैसे प्रधानमंत्री और उनके सरपरस्त पाक सेना प्रमुख सुनते हैं, और थोड़ा-बहुत दबते हैं। पहले नंबर पर शी चिनपिंग, और दूसरे पुतिन हैं। ठीक से समझा जाए तो कश्मीर की घटना ने अमेरिका, फ्रांस, रूस, इजराइल, यूएई, सऊदी अरब, दक्षिण कोरिया यहां तक कि चीन जैसे देशों को व्यापार के टेबल पर एक्टिव मोड में ला दिया है। भारत में हथियार, परमाणु रिएक्टर, युद्धक व यात्री विमान, सोलर टेक्नोलॉजी, ईकामर्स, फाइव जी का बाजार हासिल करने, और गैस-पेट्रोलियम निर्यात की इच्छा हो, तो पहले कश्मीर पर समर्थन करो। पीएम मोदी इस संदेश को बिजनेस टेबल पर पहले रखते हैं, समझौते पर हस्ताक्षर बाद में करते हैं। यह सिलसिला कुछ महीनों तक चलेगा। प्रेसिडेंट पुतिन ने संभवतः कश्मीर कार्ड को समझते हुए व्यापार व कूटनीति को व्यापक आयाम दिया है। व्लादीवोस्तोक की बैठक में पीएम मोदी को बुलाने का दूसरा मकसद एशिया-प्रशांत इलाके में भारत को अमेरिकी प्रभामंडल से बाहर निकालना भी है। चेन्नई से व्लादीवोस्तोक के बीच मेरी टाइम रूट तय किया जाना, उसी रणनीति का हिस्सा है। व्लादीवोस्तोक बैठक में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और मलयेशिया के पीएम महाथिर मोहम्मद का आना एशिया-प्रशांत में रूस के बड़े खेल की ओर संकेत दे रहा है। ये दोनों नेता अबतक अमेरिकी क्लब के सदस्यों में शुमार होते थे। कुछ महीनों बाद, व्लादीवोस्तोक बैठक के नताइज पूर्वी एशिया के उन इलाकों में दिखने आरंभ हो जाएंगे, जहां कई वर्षों से अमेरिका अभेद कलेबंदी में व्यस्त था। ऐसे मंचों पर विश्वनेता जब मिलते हैं, जाकिर नायक का प्रत्यर्पण बहुत छोटा विषय हो जाता है। मलयेशिया ने पिछले कुछ हफ्तों से जिस तरह जाकिर नायक पर पाबंदी आयद की है, उससे लगता है, इस धर्मगुरू की उल्टी गिनती आरंभ हो गई है। व्लादीवोस्तोक में पीएम मोदी हों, और आतंकवाद पर चर्चा न हो, असंभव सी बात है। आतंकवाद पर चर्चा थाली में आलू की उपस्थिति जैसी हो चुकी है। मगर, उसके हवाले से पाकिस्तान को निशाने पर लेना है, यह भी हमारी कूटनीति का हिस्सा है।पीएम मोदी ने व्लादीवोस्तोक के मंच से स्पष्ट कर दिया कि भारत को ऊर्जा सुरक्षा चाहिए। ईरान से तेल आयात में हुए पेचो$खम की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमें अक्षय, $खासकर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करना है। इलेक्ट्रिक कार की भारी-भरकम बैट्री से निजात पाकर अपेक्षाकृत छोटी व लंबे समय तक चलने वाली बैट्री को विकसित करनी है। पीएम मोदी का व्लादीवोस्तोक में दिया यह भाषण एक विजन डॉक्यूमेंट की तरह था, जो भविष्य के कार उद्योग की दिशा बता रहा था। ठीक उसी समय मोदी जी के मंत्री नितिन गडकरी देश में कार निर्माताओं को समझा रहे थे कि पेट्रोल व डीजल गाड़ियों के निर्माण में कोई बाधा नहीं होने देंगे। आप निश्चिंत रहिए। ये दो विरोधाभासी बयानों को भारतीय उद्योग जगत किस रूप में लेता है, देखते हैं। रूस के लिए भारत एक बाजार रहा है, पीएम मोदी इसे सहकार में परिवर्तित करना चाहते हैं। मोदी व्लादीवोस्तोक के मंच उन्होंने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है कि हथियार निर्माण के क्षेत्र में हम साथ-साथ $कदम बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन जिस नाभिकीय रिएक्टर के व्यापार पर रूस का एकाधिकार है, वह तकनीक आपको क्यों दे भला? अगले 20 वर्षों में 20 रूसी रिएक्टर देशभर में और लगाने हैं। हस्ताक्षर कर दिया है, पैसे ट्रांसफर कीजिए, लगवा लीजिए। उसी तरह, मिसाइल हमले से रक्षा वाली एस-400 ट्रायंफ सिस्टम तकनीक रूस क्यों दे आपको? यह वही रूस है, जिसने क्राइजोनिक तकनीक भारत को देने से मना किया था। इसलिए, अमेठी में एके-47 राइफल साझेदारी में बनाइये और पुतिन के गुण गाइये। एस-400 की छह रेजीमेंटल सेट हासिल करने के वास्ते चीन को तीन अरब डॉलर रूस को देना पड़ा है। इसकी पहली खेप मई 2018 में चीन पहुंच चुकी थी। अब तुर्की ने भी इसे हासिल कर इस्तांबुल को सुरक्षित कर लिया है। क्या हमारी प्राथमिकता परमाणु कवच नहीं है? आप लंबा खींचे जा रहे हैं। आप इमरान खान की धमकी पर राजनीति कीजिए, पर भूल जाते हैं कि देशवासियों में असुरक्षा की भावना पैदा हो रही है। चीन ने रूस से एस-400 का सौदा 2014 के आ$िखर में किया था। भारत ने एस-400 आयात की बातचीत उन्हीं दिनों आरंभ की थी। फिर उसे हासिल करने में चीन से हम पीछे क्यों रह गये? एस-400 ट्रायंफ सिस्टम अनिल अंबानी की फैक्ट्री में तो बनना नहीं था कि विवाद होता! अक्टूबर 2016 में गोवा में प्रधानमंत्री मोदी और प्रेसिडेंट पुतिन की उपस्थिति में एस-400 की डील पर मीडिया हाइप देखकर लोगों को लगा कि यह सिस्टम भारत आने ही वाला है। ट्रंप के सत्ता में आने के कई महीनों बाद, अमेरिकी संसद ने रूस पर प्रतिबंध लगाने के वास्ते काटसा (काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थू्र सैंग्शंस एक्ट) पारित किया था। श्काटसाश् के अनुच्छेद 231 के जरिये अमेरिकी राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि वह 12 प्रकार के प्रतिबंधों में से पांच को जब चाहे लागू कर सकता है। इस आधार पर ट्रंप प्रशासन ने 2 अगस्त 2017 को रूस, ईरान और उत्तर कोरिया पर काटसा आयद किया था। इससे जुड़े दो सवाल हैं। पहला, भारत काटसा मानने को बाध्य क्यों हो? दूसरा, 2 अगस्त 2017 से पहले भारत ने रूस, ईरान से जो समझौते किये, वह क्यों रद्द की जाए? अगस्त 2017 में काटसा प्रतिबंध के बावजूद रूस ने 53 देशों से हथियार निर्यात के वास्ते समझौते किये थे। तुर्की, जो अमेरिकी क्लब का सदस्य है, अपनी सुरक्षा के सवाल पर अमेरिकी प्रतिबंध को ताक पर रख दिया था। तो हमारी ऐसी कौन सी कमजोरी है, जो एस-400 ट्रायंफ सिस्टम को भारत लाने से रोक रही है? पैसे की कमी होती, तो पीएम मोदी एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन यों ही दान में नहीं दे आते !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *