बर्थडे स्पेशल
याहू, “सुकू सुकू” “ओ हसीना जुल्फों वाली” “आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे” और “आ आ आजा मै हु प्यार तेरा” जैसे गानों को सुनते ही शम्मी कपूर का दशकों तक दर्शकों के दिलों पर राज करने वाला चेहरा याद आ जाता है। हिन्दी फिल्मो के पहले सिंगिंग-डांसिंग स्टार शम्मी कपूर का जन्म आज के दिन 21 अक्टूबर 1931 को मुम्बई में हुआ था। शम्मी कपूर रंगमंच के जाने माने अदाकार और फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के दुसरे बेटे थे। उन्होंने वर्ष 1953 में फिल्म “जीवन ज्योति” से अपनी अभिनय पारी की शुरुवात की थी। वर्ष 1957 में नासिर हुसैन की फिल्म “तुमसा नही देखा” में जहा अभिनेत्री अमिता के साथ काम किया वही वर्ष 1959 में आई फिल्म “दिल दे के देखो” में आशा पारेख के साथ नजर आये थे। वर्ष 1961 में आई फिल्म “जंगली” ने उन्हें शोहरत की बुलन्दियो पर पहुचा दिया था और इसके बाद वह सभी प्रकार की फिल्मो में एक नृत्य कलाकार के रूप में अपने छवि बनाने में कामयाब रहे थे। फिल्म का गीत “याहू” दर्शको को खूब पसंद आया। उन्होंने चार फिल्मो में आशा पारेख के साथ काम किया जिसमे सबसे सफल फिल्म वर्ष 1966 में बनी “तीसरी आँख” रही। वर्ष 1960 के दशक में मध्य तक शम्मी कपूर “प्रोफेसर” “चार दिल चार राहे” “रात के राही” “चाइना टाउन” “दिल तेरा दीवाना” “कश्मीर की कली” और “ब्लफमास्टर” जैसी सफल फिल्मो में दिखाई दिए थे।
फिल्म ब्रह्मचारी के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरुस्कार मिला था | “भारत के एल्विस प्रेसली” कहे जाने वाले शम्मी ने रुपहले पर्दे पर तक तक अपने अभिनय की शुरुवात की , जब उनके बड़े भाई राज कपूर के साथ ही देव आनन्द और दिलीप कुमार छाए हुए थे। पारिवारिक पृष्टभूमि होने के बावजूद उनकी शुरुवाती फिल्मे बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही। उन्होंने पचास के दशक में “डक -टेल” शैली में बाल कटवा कर “तुमसा नही देखा” के साथ खुद को नई लुक में पेश किया, उसके बाद उन्हें सफलता मिलते गयी।1961 में फिल्म “जंगली” की सफलता के साथ ही पूरा दशक उनकी फिल्मो के नाम रहा। दर्शको के साथ ही पूरा दशक उनकी फिल्मो के नाम रहा। दर्शको के बीच उनकी अपील “सुकू सुकू” “ओ हसीना जुल्फों वाली” “आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे” और “आ आ आजा मै हु प्यार तेरा” जैसे गानों के चलते थी जिनमे उन्होंने बड़ी ही मस्तमौला शैली में थिरकते हुए अदायगी की | हालांकि “कश्मीर की कली” “राजकुमार” “जानवर” और “एन इवनिंग इन पेरिस” जैसी कुछ फिल्मो में उनकी अभिनय क्षमता पर सवाल उठे लेकिन “जंगली” “बदतमीज” “ब्लफमास्टर” “पगला कही का” “तीसरी मंजिल” और ब्रह्मचारी की बेहतरीन सफलता के जरिये शम्मी ने अपने आलोचकों के मुह बंद कर दिए थे।
उन्होंने अपनी फिल्मो में बगावती तेवर और रॉकस्टार वाली छवि से उस दौर के नायको को कई बन्धनों से अजादा किया था। हिंदी सिनेमा को यही उनकी बड़ी देन थी। वह बड़े शौकीन मिजाज के थे और तरह तरह की गाडिया चलाने का शौक वे रखते थे। शाम को गोल्फ खेलना , समय के साथ चलना बखूबी जानते थे। फिल्मो में वह जितने जिंदादिल किरदार निभाया करते थे उतनी ही जिन्दादिली उनके निजी जीवन में दिखती थी। उनके जीवन में कई मुश्किल दौर भी आये खासकर जब 60 के दशक में उनकी पत्नी गीता बाली का निधन हो गया था। उनके कदम तब कुछ ठिठके जरुर थे पर फ़िल्मी पर्दे के रंगरेज शम्मी अपने उसी अंदाज में अभिनय से लोगो को मदमस्त करते रहे थे। बढ़ते मोटापे की कारण शम्मी कपूर को बाद में फिल्मो में मुख्य भूमिकाओं से हटना पड़ा लेकिन वह चरित्र अभिनेता के रूप में फिल्मो में काम करते रहते थे। उन्होंने मनोरंजन और बंडलबाज नामक दो फिल्मो का निर्देशन किया लेकिन ये फिल्मे नही चली। चरित्र अभिनेता के रूप में उन्हें 1982 में विधाता फिल्म के लिए श्रेष्ट सहायक अभिनेता का पुरुस्कार मिला। वह एक लोकप्रिय अभिनेता ही नही हरदिल अजीज इंसान थे। उन्होंने 14 अगस्त 2011 को मुम्बई के ब्रीज कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली।